Thursday, September 22, 2011

मेरा कुछ भी नहीं !!


हर दफा ज़िंदगी..
बस एक पहेली नज़र आती है....
थोड़ी समझ आती है...
पर उलझा भी जाती है
वक्त को समेटने ..
सहेजने की कवायद के बीच...
ख्वाहिशों की फेहरिस्त हर खत्म होते दिन के साथ बढ़ती जाती है..

...

पता नहीं क्यों...हर रोज़
हमेशा किसी ना किसी चीज़ का जिक्र...
किसी की जिद्...किसी का सपना...कोई गुंजाएश...कोई यकीं.....
कभी छोटी ख्वाहिश...कभी बड़ा ख्वाब...
कभी समंदर जो देखा ही नही...
और कभी वो नदी जिसमे कभी उतरी ही नही
वो पेड़ भी जिनकी जड़ों को कभी महसूस ही नही किया
और वो आसमां भी जो कभी इन आंखो से ओझल ही नही हुआ
नदी,नाले,दरीचे,दरिया,फूल,पत्ती,पंख,कांटे,दरख्त,जंगल,मैदान..और इंद्रधनुष
सब जैसे मेरा हिस्सा
अनदेखी जिंदगी का हिस्सा
अन्जानी लेकिन मेरे ख्वाबो की रौशनी जैसा
खूबसूरत
.....

लेकिन फर्क पड़ता है...
जब कोई
सपने से जगाता है..
यथार्थ समझाता है...
ख्वाबों को मिटाता है
....

उसने भी सब एक साथ मिटा दिया
जैसे जिक्र भी ना हुआ हो कभी
अब जिंदगी मे सामने ....
कुछ अन्जाने से नाम
कुछ अन्जाने चेहरे
कुछ टूटे कांच की किरचों जैसे
कुछ भंवरजाल जैसे...

और मैं
हमेशा की तरह
शून्यता...
ना मेरा वो संगीत....
ना अलाप.. ना राग....
ना मेघ ना मल्हार...
शायद कभी था ही नही....

.........

इसके बाद
इस अबूझ पहेली संग मैं..
क्या जूझना..क्या समझना..
क्यो अपने आप को खोना
द्व्ंद रहता है...

फिर भी...
सच हो या झूठ
था तो वो मेरा ही सपना,

लेकिन
लगता है...
जैसे
मेरा कुछ भी नहीं !!

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

संजय भास्‍कर said...

बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है

Puja Upadhyay said...

बड़ी देर इंतज़ार कराया तनु...महुआ की इस भीगी खुशबु में सराबोर हुए कितना वक्त गुज़रा था तुम क्या जानो...

दर्द...और दर पर ही लौटना...अलग अलग रास्तों से, पर एक अजीब सा सुकून भी देता है लिखना.

खुशामदीद...ऐसे गायब न हुआ करो.

महुवा said...

:)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत भावपूर्ण रचना ..