मैं प्यार करती हूं
मनुहार करती हूं..
मैं पालनहार हूं ...
पर गुहार भी करती हूं...
मैं सृजन जानती हूं..
तो विनाश भी करती हूं
संसार रचती हूं...
इसलिए जननी हूं
मैं सत्य हूं...सुन्दर हूं..शिवं भी हूं...
मैं ही मां हूं..बेटी हूं...बहन भी...
और
तुम्हारी प्रिया भी...
तुम कहते हो..
मैं यौवन और श्रृंगार हूं..
लेकिन
मैं मृगीचिका भी....
मैं सृष्टि हूं...
मैं सम्पूर्ण हूं...
गर्व है मुझे
मैं औरत हूं...!!
8 comments:
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति......
मै औरत हूँ.....इस एक "औरत" शब्द में सम्पूर्ण जग समाहित है......जननि, स्रष्टि की रचयिता....नारी..से ही जग की पूर्णता है | बहुत सुन्दर......
शुक्रिया :)
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
शुक्रिया संजय जी :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
♥
आदरणीया तनु जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
मेरे मन को छ्ने वाले भाव हैं आपकी कविता में -
मैं सत्य हूं...सुन्दर हूं..शिवं भी हूं...
मैं ही मां हूं..बेटी हूं...बहन भी...
और
तुम्हारी प्रिया भी..
श्रेष्ठ रचना के लिए आभार और बधाई !
मुझे नारी के इन स्वरूपों में गहरी श्रद्धा है ।
मैं अपने एक गीत में कहता हूं -
औरत को अपनी खेती कहने वालों ! थोड़ी शर्म करो !
मां पत्नी बेटी बहन देवियां हैं ; चरणों पर शीश धरो !!
अब यह कोई भी ना समझे , कि ‘नारी पुरुष की जूती है’
हम धूल नहीं पैरों की ऊंचे चांद-सितारे छूती हैं !!
यह गीत महिला दिवस के अवसर पर मैंने अपने ब्लॉग पर भी लगाया था…
आपके ब्लॉग पर अन्य रचनाएं भी अच्छी हैं । हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तुम कहते हो..
मैं यौवन और श्रृंगार हूं..
लेकिन
मैं मृगीचिका भी....
लाजवाब!! रस भी है इसमें और सार भी। एहसासों का अभिसार भी।
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