Wednesday, June 22, 2011

कुछ नया !!!!

एक अरसा हुआ ,तुमने कुछ लिखा नहीं नया ?
हाँ...!!
क्यूँ ?
मन नहीं करता ,भीतर कोई एहसास नहीं जगता....
मतलब ?
नदी के साथ बहना ...बह जाना नहीं होता ...
सूरज के साथ जागना...जाग जाना नहीं होता ...
मतलब ...?
मतलब ये कि वो एहसास ही क्या जिन्हें जताने के लिए शब्दों का सहारा लिया जाये ...और वो प्यार ही क्या जिसे कहने के लिए शब्द तलाशे जाएँ ...शब्द तराशते तराशते अब हाथों में भी खराशें हो गयीं हैं...जैसे कोई मूर्तिकार प्रस्तर शिला गढ़ते गढ़ते अपने हाथों में होते घावों परवाह नहीं करता पर टीस तो उठती होगी ही ना....कुछ कुछ वैसा ही बस ..खैर छोडो !!
ये कमेन्ट है ?
नहीं !!
फिर ?
अब इसे भी समझाने के लिए शब्द लाऊँ क्या ?
u knw ....u are impossible
always sound negetive & depressive !!
नहीं, तुम गलत सोचते हो
चलो तो तुम ही सही बता दो
नहीं,,,अब ज़रूरत नहीं... इतने साल बीतने पर अगर शब्द और सोच नहीं पहुँच पाई ..तो फिर उम्मीद बेमानी
wat do u want frm me?
oh!! फिर सवाल !!
nothing ....simply u !!!!
and u knw it...!!
..............................
.................................
तुम जानते हो ...चीज़ों को देखने का एक नजरिया होता है ...
एसी रूम में बैठकर कांच की दीवार के पार डूबते/उगते सूरज को देखकर मन में कुछ ख़ास एहसास नहीं होता,हैना ....
सिर्फ लगता है मेट्रो सिटी का आदी ये सूरज अपनी ड्यूटी ख़त्म कर लौट रहा है .....
लेकिन ज़रा सोचो ..
आखिर है तो ये गोधुली की ही बेला ना ?
इसी सूरज को पहाड़ों ...जंगलों या अपनी ज़मीन से देखोगे तो मन में कुछ नहीं...बल्कि बहुत कुछ होता है......
और इसी सूरज को समंदर किनारे ज्यादा देर निहारो तो डिप्रेशन होता है...
पर फिर भी बेला तो गोधुली की होती है ना.....
लेकिन अब जैसे एक रुटीन
मतलब ?
..................................................
u knw most of d time u r beyond my mind....
अच्छा....
तुम जानते हो मेरी आवाज़ में खनक और चेहरे पर चमक कब आती है...
ना
जब तुम इनमें होते हो....
पर एक अर्सा हुआ ...अब दोनो ही गायब हैं...
और तब और भी ज्यादा
जब एक मैसेज भेजकर तुमसे पूछना पड़े कि can i talk to u?...
जानते हो ऐसा लगता है अकेलेपन के घने सायों से अपनी ही आवाज़ की प्रतिध्वनि मांग रही हूँ,....
कभी तो तुम्हारे देखने से वक्त ठहर जाता है...और एक नयी ही दुनिया बन जाती है...और कभी तुम्हारी बनायी हुई बिजीनेस...इस भरी दुनिया में अकेला कर जाती है... जैसे किसी अंधे कुँए की अतल गहरायिओं में अपने आप का डूबना और उतरना देख रही हूँ...
और बस वक्त यूंही छोड़कर कहीं आगे बढ़ जाता है....
और मैं उस ठहराव में फंसी....तैर नहीं पाने पर अफ़सोस करती रह जाती हूँ
पर तुम कुछ जैसे समझ ही नही पाते..
तुम नही जानते ये जिंदगी हार जीत....सवाल जवाब....से कहीं ज्यादा परे है....
और हर रोज़ मुझे लगता है कि as if i am loosing something....
I am not living my life.....
..........
.............
then do one thing .....go to ur home ...take a brk
and u'll be allrite
.......................
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नहीं तुम फिर गलत हो..
ये चीज़ें मोमेंट्री नहीं हैं ...ये हर पल आपके साथ चलतीं हैं ...
off late I realise की लाइफ में जो कुछ आपके सामने आता है ...उसे आपको gracefully एक्सेप्ट कर लेना चाहिए...
क्यूंकि शायद nature भी हमसे यही चाहती है....हैना ?
हम्म ...!!
फिर तो मैं जो कुछ कर रही हूँ या किया... वो सब गलत था/है
means ?
मतलब अगर मैं और तुम आमने सामने बैठे हैं ...तो वो out of the way efforts हैं मेरे,
तुम्हारे लिए..............?
क्यूंकि तुम तो कभी मेरे इंतज़ार में थे ही नहीं ..!!
wat are you tryng to say ?
वही जो तुम शायद सीधे सीधे समझ पा रहे हो....
..........................
तुम्हें याद है...तुम्हारे लिए मैने कुछ भेजा था......
कि पहाड़ अपने तिकोने पन में सबसे ज्यादा संकुचित होते हैं..ये उनकी स्वाभाविक विशेषता है....लेकिन वृक्ष के साथ ऐसा नहीं....उनका अकेलापन, वृद्धि की स्वच्छंद इच्छा और नितांत निजी शख्सियत ही जंगल के सौंदर्यबोध का विकास करती हैं.... वृक्षों की सामूहिकता मनुष्य की सामूहिकता से मिलती-जुलती है.... भरी भीड़ में अकेला होने की सामूहिकता...इंसान का व्यवहार भी ऐसा ही होता है... दोस्ती किसी से भी हो सकती है, लेकिन विश्वास वह उन्हीं पर कर पाता है, जिनमें पेड़ जैसी विशेषताएं हों.... यानी जिनमें स्थिरता हो....कम से कम चंचलता हो....जो अपने अकेलेपन में भी मदद की छांव दे पाए.... जो अपने भीतर की हरियाली को सामने वाले के भीतर रोप सकें.... कड़ी धूप में शीतलता का बोध दे और छोटे-मोटे आघात में भी जड़ों को जमाए रखे.....
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फिर भी शायद तुम समझ नहीं पाए.....
तुम जानते हो इंसान सबसे कमज़ोर जानवर है ?
तुम दूर जाते हो और में नेट पर तुम्हे तलाशती हूँ ....
net पर compatibility तलाशती हूँ...
daily .....monthly .....weekly forecast पढ़ती हूँ ...
भरसक जानती हूँ की अखबारों या net पर छपे शब्द किसी की जिंदगी नहीं बदल सकते ...
यंही मैं सबसे कमज़ोर हूँ ...
तुम जानते हो...
ये मेरी फितरत नहीं....
फिर भी...
फिर भी तलाशती हूँ ...कुछ नया !!!

5 comments:

parveen kumar snehi said...

apne me hi khoye shabd...
sach much bahut kuchh nya..
sirf padhne or tarif karne tak hi nhi..samjhne or jeene wale shabd..

Puja Upadhyay said...

सतत ढूँढना और खो जाना...बार बार लौट आना कि रास्ते तो वही हैं...और फिर उन्ही चौराहों पर उसी हमसफ़र की चाह करना.

जिंदगी अक्सर कितना उलझा देती है न...जब कि देखो अगर तो चाह बस इतनी सी है- कैसे भी रस्ते हों....तुम साथ रहो. नहीं?

महुवा said...

sach :-)

vijay kumar sappatti said...

आप बहुत अच्छा लिखती है .. आपकी ये रचना बहुत ही शानदार बन पड़ी है ....लेकिन बहुत दुःख और टीस छोड़ गयी मन में !!!

आपको बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

rajiv said...

Ek baat to pakki hai kuch naya hamesh achch hota hai... Bahut achcha ...yahan tak ki purani cheejen jab bahut purani ho jaati hain to unme bhi kuch nayapan ajata hai..to chalo purane panno me khoje kuch naya..badhiya