बड़ी मासूम सी ख्वाहिश हो....
ज़िंदगी को हर लम्हा.....
पीने की इजाज़त हो.....
तेरे आगोश में सिमटूं मैं......
ना फिर सांसों की गुज़ारिश हो....
यही ख्वाब हैं मेरे....
बस इन ख्वाबों की इबादत हो...
वो पहलू हो....
वो लम्हें हो......
ना कोई और फिर ख्वाहिश हो.....
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बस और कुछ नहीं.......।।
11 comments:
भावपूर्ण!!
समर्पण का अच्छा भाव।
सादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com
ख्वाहिशें तो सुन्दर होती हीं हैं...आपकी भी है. ख्वाहिशें कविता की शक्ल में!!
इतना कुछ ..फिर भी कह दिया.....ओर कुछ नहीं....एक लम्हे में सारी जिंदगी मांग ली आपने....
तेरे आगोश में सिमटूं मैं......
ना फिर सांसों की गुज़ारिश हो....
इस गुज़ारिश को मेरा सलाम
बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर रचना !
बहुत शानदार लिखती हो.. मज़ा आ जाता है पढ़कर.. आंख भी नम हो जाती है...
बहुत अच्छी लगी जी
achchi kavita. achchi khwahish.
Dr Jagmohan Rai
अहा!
छोटी, किंतु बहुत ही मोहक कविता मैम!
तेरे आगोश में सिमटूं मैं......
ना फिर सांसों की गुज़ारिश हो....
अत्यंत भावपूर्ण रचना
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