Thursday, March 5, 2009

क्या वो तुम थे....

यूही गुज़रते मैनें झांका उस रेलगाड़ी की खिड़की से बाहर.....जो मेरी सोच को बाहर की चीज़ों मे तब्दील कर.....एहसास करा रही थी....तुम्हारा..... उन खेतों मे...... किसानों के चेहरों पर...... दूर तक हरे-भरे फैले खेतो की हरियाली में....उन उड़ते परिंदो में.....और दूर तक नज़र आते उस आसमान में.......मुझे हर तरफ तुम ही नज़र आ रहे थे.....शायद वो तुम थे या मेरा ख्याल....जो हर गुज़रने वाले स्टेशन के साथ ही ले आता था तुम्हें एक नए रुप ....एक नए परिवेश में.....तुम्हे देखते-बूझते वो दिन गुज़रा.....शाम ढली और रात का वोही सन्नाटा अपने पूरे शबाब के साथ उतरा जो तुम्हें वहां से छीन कर ले जाने की पूरी तैयारी में था.....जैसे-जैसे रात अंधेरे की ओढ़नी सर पर डाल अपने रुप पर उतर रही थी.....मेरी धड़कने भी बढ़ रही थी...क्योंकि तुम्हारा चेहरा धुंधलाता जा रहा था.....वो कभी पेड़ो के पीछे छुप रहा था......तो कभी रेलगाड़ी के नीचे छुप रहा था......तो कभी कहीं से उड़कर आ रहे धुंए की ओट लेता भाग रहा था......तुम्हें देखने की कवायद करते-करते ज़रा मुंह बाहर निकालती तो........कमबख्त वो कोयला छिटक कर आंख में भर रहा था.....ऐसा जैसे वो भी चिढ़ रहा हो मेंरे प्यार से .......मेरी शिदद्त से जो तुम्हें हर शै मे तलाश कर रही थी.....फिर अँधेरा बड़ा...और बड़ा होता चला गया और तुम्हारी तस्वीर धुंधलाती चली गई.....पर फिर भी मैं बाहर झांक रही थी कि कहीं तो तुम नज़र आओगे......उस बियाबान अंधेरे जंगलों में......सुनसान राहों-जंगलों में धक-मक चलती रेल की पटरी की आवाजों के बीच..... मेरी धड़कनों की आवाज़ कही दब सी रही थी.......मेरी धड़कने....रेल की रफ्तार से कदम मिलाने की जुगत में थीं..... और मेरी आंखे किसी चालाक बिल्ली की तरह अँधेरे में देखने की अभ्यस्त हो रही थीं......औऱ फिर तभी किसी सुनसान अंजान अंधेरो के बीच.....आधी रात किसी अनकहे स्टेशन के फासले पर दूर कहीं एक चमक नज़र आयी और ना जाने क्यों वो ही चमक थी जो तुम्हारी आंखो मे नज़र आती थी.......मैं हड़बड़ाहट में कही पीछे छूटते उस स्टेशन पर उतरने को व्याकुल तुम्हारी तलाश कर रही थी और लग रहा था जैसे वो तुम थे और वहीं मुझे बुला रहे थे.......गाड़ी की रफ्तार के साथ ही पीछे छूटते स्टेशन पर जाने क्यों लग रहा था कि वो तुम थे....क्या वो तुम ही थे..........

6 comments:

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुंदर. चलो तलाश पूरी तो हुई. आभार.

Puneet said...

हमेशा की तरह निशब्द्ब कर दिया अपने, कहीं खो गया था मै. बहुत खूब.

Shikha Deepak said...

बहुत सुंदर आलेख। बार बार पढ़ती हूँ पर दिल नहीं भरता। बहुत सुंदर।

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर लाजवाब कर देने वाला लिखा है आपने ..

डॉ .अनुराग said...

शुक्रिया .....इन दिनों बड़ी बेख्याली सी थी ओर कुछ रोजमर्रा की कवायद में उलझे हुए दिन.....आपको पढ़कर सकून सा मिला ...

mehek said...

behad khubsurat