Monday, February 16, 2009

इमरोज़.....एक मुलाक़ात

ये भी एक सपने के पूरा होने जैसा ही था....मैने कब पहली बार अमृता प्रीतम को पढ़ा था...याद भी नहीं...शायद आज से दस या पंद्रह साल पहले और उस वक्त ये सोचा था कि कभी इनसे मुलाक़ात होगी.....? अमृता तो नहीं पर इमरोज़ के रुप में ज़रुर अमृता को जीते हुए देखा..... इमरोज़ के अंदर और बाहर सिर्फ और सिर्फ अमृता....पहली बार इतनी शिद्दत महसूस की.....और पहली बार ये जाना कि प्यार को जिया कैसे जाता है..... इमरोज़ से मिलने जाना संभव हुआ ब्रजेश्वर मदान सर की वजह से...जिन्होंने मेरी भावनाओं को समझते हुए उनसे मिलवाया..........

कल इमरोज़ के पास से लौटते वक्त बहुत कुछ चल रहा था....मन के अंदर...काफी उथल-पुथल पर साथ ही एक सहज, सुकून शान्ति का भी मिला जुला सा अनुभव....करीब दो घंटे गुज़ारे इमरोज़ के संग....कोई सवाल नही कोई जवाब नहीं.....सिर्फ एक दफा हौले से पूछ बैठी थी.....क्या आपको साहिर नाम से कभी चिढ़ या परहेज या ईर्ष्या नही हूई...जो अमृता के साथ जुड़ा हुआ है......

और इमरोज़ ने भी इतनी सहजता के साथ प्यार को समझा दिया कि मुझे ही महसूस हुआ जैसे मैने गैरवाजिब सवाल कर डाला....और मानों ये सारी चीज़ें तो ज़िंदगी मे कही ठहरती ही नहीं....सहजता और सरलता से ज़िंदगी जीने का जो तरीका वो मुझे बता रहे थे.....वोही सब तुम मुझे हज़ार बार बता चुके हो....सिर्फ उसे तुम्हारे अलावा यहां भी जीते हुए देख रही थी....कोई बड़ा या छोटा नहीं सिर्फ और सिर्फ प्यार और उसे जीने का तरीका....

अमृता-इमरोज़ के गेट पर पहला कदम रखते ही नेमप्लेट देखकर ही मालूम पड़ गया कि यहां किसी कलाकार की रूह बसती है....लाल रंग की वो खूबसूरत आर्टिस्टिक प्लेट बहुत कुछ बयां कर रही थी.......उसके बाद उस घर मे अंदर घुसते....उनके दरवाजे से अंदर जाते.....भीतर एक-एक चीज़ पर हर कदम पर प्यार की छाप थी....हर ज़र्रे में अमृता बोलती और अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं....जीने से ऊपर चढ़ते ...उनके घर के हर कमरे में....दरों-दीवार....दरवाज़े कोई ऐसी जगह ही नहीं जहां अमृता मौजूद ना हों या वो घर प्यार की परिभाषा ना सुना रहा हो.....दरों दीवार पर पेंट नही अमृता मौजूद हैं....और अंदर बहने वाली हवा मे भी अमृता को महसूस कर पाएँगे......उस घर की एक-एक चीज़ वहां रहने वालों की दास्तान खुद बयां कर देती है.....कोई सवाल नही उमड़ते ज़हन में.......सबकुछ बहुत ही सहज़ता के साथ नज़र आता है......

शायदमैं इमरोज़ से मिलने इसलिए गई थी....क्योकि मै सिर्फ और सिर्फ ये जानना चाहती थी कि प्यार क्या होता है......क्या मुझे जो है वो प्यार नहीं....क्या प्यार के कुछ और ही मायने होते हैं......लेकिन ये नही जानती थी कि पता चलेगा कि प्यार को जिया कैसे जाता है.....हालांकि वहां पहुंचकर मुझे ये महसूस नही हुआ कि मेरा प्यार कम या अमृता-इमरोज़ का ज्यादा...क्योंकि प्यार तो सिर्फ प्यार होता है जिसे रुहानी अंदाज़ मे ही समझा जा सकता है....इसमें कम या ज्यादा की गुंजाएश नही होती......फर्क सिर्फ इतना होता है कि हम उसे कैसे जीते हैं....और उसमें कितना डूब कर उसकी शिद्दत को महसूस कर पाते है........
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हां ...लेकिन एक बड़ा फर्क नज़र आया मुझमें और इमरोज़ में....उन्होने अपने भीतर के प्यार के साथ साथ अपने कलाकार को भी ज़िंदगी दी ...और अपने रंगों के जरिए अपने प्यार में नए-नए रंग और आयाम भरते चले गए.....और मैने अपने भीतर की हर चीज़ को मार दिया.....अपने अंदर के कलाकार को भी,इंसान को भी....और हर उस चीज़ को जो मुझे थोड़ी भी खुशी देती थी.....आज हर चीज़ मुझे अपने अंदर खत्म होती नज़र आई और इमरोज़ जो उम्र में मुझसे पता ही नहीं कितने बड़े होंगे....उम्र के इस पड़ाव पर मुझे अपने से ज्यादा जवान और जिंदादिल नज़र आए......

इमरोज़ ने तो प्यार के लफ्ज़ को ही बिल्कुल जुदा अंदाज़ मे बयां कर डाला....वो तो आज भी अमृता को जीते हैं.....देखा तो पता चला कि दोनों के कमरे अलग-अलग हैं....अलग-अलग ज़िंदगी गुज़ारते भी वो एक दूसरे में जीते नज़र आए....आज भी हर सुबह इमरोज़ अमृता के लिए चाय का प्याला तैयार करते हैं....आज भी उनका कमरा वैसा ही साफ-सुथरा और रोज़ की तरह तैयार किया जाता है...जैसा अमृता के सामने किया जाता था....... मानों आज भी अमृता उस घर में बसती हैं.....

इमरोज़ कभी भी अमृता को....थी....कहकर संबोधित नही करते....और बाद में मदान सर ने मुझे बताया कि वो बीते लम्हों के साथ आज भी वैसे ही जीते हैं....साहिर और बासु भट्टाचार्य की बात कर रहे थे.....और बातों से लग रहा था कि जैसे दोनो ही जिंदा है और रोज़ आज भी आते-जाते हैं....पर वो लोग तो इस दुनिया मे हैं ही नही पर इमरोज के साथ वो जिंदा हैं.....

मुझे ऐसा लगता है.....प्यार में कोई बड़ा-छोटा नही होता...और ना ही कोई नाप-तौल होती है......किसी का प्यार किसी से कम भी नही होता क्योकि प्यार तो सिर्फ प्यार ही होता है.....फिर भी जब इमरोज़ अमृता के बारे में बात कर रहे थे तब चाय का प्याला हाथ में पकड़े-पकड़े....मै शायद कही खो गई थी....मेरे आंसू अपने आवेग को रोक ही नही पाए और बस यूंही बह चले....इमरोज़ मुझसे पूछते हैं....क्या हुआ,कोई याद आ गया क्या......मैनें कहा....नहीं,बस यूंही....और बेलाग कह दिया.....feeling jealous of amrita....पर उन्हें क्या पता....कि कोई याद नही आता बल्कि वो मेरे साथ हर दम हर पल रहता है....लेकिन हकीकत ये भी थी कि i was really feeling jealous.....कि कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है...

इमरोज़ ने लगभग हर मुद्दे पर बात की.....समाज,औरत,बच्चा,ख्वाहिश,बिस्तर,शादी,कानून,खोखले रिश्ते,मुम्बई,गुरुदत्त,गुलज़ार,पैसा,सपने,मकान,ज्ञानपीठ,साहिर,रिश्ते,आर्टिस्टिक इलस्ट्रेशन.....अमृता का रेडियो स्टेशन,पांच रुपए रोज़ कमाना,स्कूटर पर उनके साथ जाना.......
अमृता का इमरोज़ के कमरे पर मिलने जाने के लिए सिर्फ इसलिए इंकार कर देना कि अमृता को अच्छा नही लगता कि उन्हें इमरोज़ का दरवाज़ा खटखटाना पड़े......इमरोज़ ने उसी रोज एक और चाबी बनवा के अमृता को देदी और कहते है कि मैने अमृता की आंखो मे अपना घर बनते हुए देखा.......

इमरोज़ ने बताया कि अहम जैसा शब्द कही था ही नहीं....अमृता हमेशा से ही ज्यादा पॉपुलर रहीं और इमरोज़ कही कम....पूरे छह साल तक अमृता एमपी रही और पार्लियामेंट लाने ले जाने के लिए.....इमरोज़ ही उनके ड्राइवर बनके जाते थे....और पूरे टाइम पार्किंग मे खड़े रहकर इंतज़ार किया करते थे.......उन्होने बताया कि हमने कभी ड्राइवर या घरेलू नौकर नही रखा क्योंकि इससे हमारी निजता का हनन होता है.... हर बार सिर्फ और सिर्फ उन्होंने ये बताया कि जीने के लिए सहज होना कितना ज़रुरी है.....

इसके अलावा उन्होंने बताया कि अमृता देर रात को ही जागकर लिखा करती थीं....और रात करीब एक बजे वो उठकर उनके लिए चाय बनाया करते थे....औऱ चुपचाप उनकी टेबल पर रख आते थए......हंस कर बता रहे थे....कि अमृता लिखने के स्पैल में होती थीं और आंख उठाकर भी नहीं देखती थीं....कि कौन आया और कौन गया....

औरइसके अलावा भी इमरोज़ ने इतनी बातें बतायी हैं कि लिखने बैंठूं तो एक छोटी-मोटी किताब तो बन ही जाएगी....चलते -चलते उनकी दीवार पर टंगे कैलेंडर के लिए मैने कहा मुझे भी चाहिए....ऐसा ही....उस कैलेंडर में इमरोज़ ने नज्म लिख रखी हैं......उन्होने वो कैलेंडर ही मुझे दे दिया औऱ उस पर लिख कर दिया है..........

for dear tanu....
EVERYTHING U LOVE IS YOURS........
नई ज़िंदगी के लिए शुक्रिया इमरोज़...और मदान सर का....
(शायद शब्द कम पड़ रहें हैं और कहीं कुछ छूट रहा है....बताने के लिए....)

12 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

कोई बड़ा या छोटा नहीं सिर्फ और सिर्फ प्यार और उसे जीने का तरीका....

बहुत ही अच्छा लगा ये पोस्ट पढ़ कर

प्यार छोटा या बड़ा नही होता .... बस शिद्दत से जीना आना चाहिये

रंजू भाटिया said...

इमरोज़ से मिलना प्यार से रूबरू होने जैसा लगता है ...बहुत सुंदर यादगार लफ्जों में कहा आपने इस को यहाँ शुक्रिया

aprajita said...

apke jariye hamne bhi pyar se mulakat kar li.thanks.

mamta said...

अच्छा लगा पढ़कर ।

P.N. Subramanian said...

एक लाजवाब कशिश भरी पोस्ट. आभार.

ghughutibasuti said...

प्यार है ही ऐसी चीज़ की जो करे वह भी शब्दों में नहीं बता सकता, बस एक गहराई सोच में, समझ में, जीवन दर्शन में आ जाती है, जो इस प्यार को देखे या थोड़ा सा भी समझे वह भी बेहतर व्यक्ति बन जाता है। ना प्यार का कोई नुस्खा है, न सही गलत तरीका। प्यार बस प्यार है।
घुघूती बासूती

डॉ .अनुराग said...

गुलज़ार का खामोशी का वो गीत याद आ गया ...." हाथ से छूकर इसे रिश्तो का इल्जाम न दो '....

Deepti Rastogi Gupta said...

aisa ruhaani pyaar kismat se naseeb hota hai.. bahut accha laga padh kar.. dhanyawaad.

Apun Ka Desh said...

Jaane Kya Baat Hai,
Yahaan Koyee Khaas Hai.
Warnaa Dhuaan Nahin Uthta,
Zaroor Kahin Aaag Hai.
Jaane Kya Baat Hai.

Puneet said...

बहुत ही अच्छा लिखा है वास्तव मे प्यार मे कोई भी अपेक्षा नहीं होती वो तो आप को जीने का तरीका सिखाता है

Anonymous said...

jeevan kitna neeras hota agar prem na hota...
apne priya ke liye sarvasva samarpit kar dena bina kisi waapsi ki ummeed rakhe shayad shuruat hai pyaar karne ki...

Unknown said...

pyar ko mahsus karna ,aur usko har jagah paana......,pyar ki toh bas misaale hai ,jo jaha tak pahucha usne utna bata dia ......sach ise naapa ya taula nahi ja sakta....pyar ka koi ore ya chhor nahi hai.....jiske haath jo sira lag gaya.......voh utne se hee tar gaya......aage to gahraai..... aur koi hisaab nahi ...... jisko na toh bola ja sakta hai aur na hi likha ja sakta.......jubaan khamosh .....aur lab shaant ho jaate hai...... pothiaan bhar jaati hai......siyaahi khatam ho jaati ........ umar juzar jaati hai........ choley badal jaate hai .......kuch aansu .......hum ....aur pyar ka ehsaas ........shiddat........ aur sir ka jhukna .....aap lucky hai jo Imroz se mil pai.take care