कल अनिल कुंबले रिटायर हो गए....और इसके साथ ही खत्म हो गईं कुंबले को मैदान में देखने की लाखों-करोड़ो दीवानों की हसरतें भीं.....ये शायद कुंबले की गुगली जैसा ही था......आखिरकार उनकी जिंदगी में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कोटला मैदान से उन्होनें वो अप्रत्याशित घोषणा कर ही दी....जिसके साथ ही सब लोग सकते में आगए....ये शायद सभी के लिए काफी ज़ोर का झटका था जो ज़ोर से ही लगा......और बहुत मुमकिन है कि ये उन लोगों के लिए भी झटका हो ......जो गाहे- बगाहे सीनियर खिलाड़ियों पर सन्यास का दबाब बनाने की कोशिश करते रहें है....
खैर कुंबले ने घोषणा कर ही दी और इसके साथ कुंबले हमेशा के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से भी अलविदा हो गए।....अपने ही अंदाज़ में रहने वाले कुंबले ने इस फैसले के लिए भी अपना पसंदीदा मैदान ही चुना,वो मैदान जो उनकी ज़िंदगी में खास अहमियत रखता है......क्योंकि यही वो मैदान है...... जहां कुंबले ने 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ एक टेस्ट पारी के सभी 10 विकेट लेकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया था...
इतना ही नहीं, बीते 18 साल में वह भारत की ओर से एकमात्र मैच विजेता गेंदबाज भी रहे हैं.....जिसकी भरपाई करने में अभी काफी वक्त लगेगा....
लेकिन, कुंबले का ये फैसला इतना अप्रत्याशित था कि कमेंट्री बॉक्स में बैठे सुनील गावस्कर भी एक बार विश्वास नहीं कर पाए... लेकिन सच यही था... थोड़ी देर में जब खबर की पुष्टि होती गई तो कोटला मैदान में दर्शकों में भी सन्नाटा पसरने लगा... 18 साल से टीम इंडिया की गेंदबाजी की कमान संभाले चलने वाले कुंबले अपने चाहने वालों को भी इस फैसले से क्लीन बोल्ड कर चुके थे.....
आठ ओवर के खेल के बाद टेस्ट समाप्त हुआ और भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल लेग स्पिन गेंदबाज का करियर भी थम गया......हालांकि कुंबले अभी ये सीरिज़ खेलना चाहते थे लेकिन शायद उंगली की चोट ने वक्त बदल दिया......इस फैसले के बाद ये तो लगता है कि कुंबले जैसे जीवट इंसान के लिए ये फैसला लेना इतना आसान नहीं रहा होगा........कुंबले इससे पहले भी चोटों से जूझते रहे हैं ......लेकिन सिर्फ एक ही दिन में इतनी सहजता के साथ अपने करियर के बारे में फैसला भी सिर्फ कुंबले ही ले सकते थे..
अपने अट्ठारह सालों के करियर में कुंबले ने सबकुछ देखा.....स्टारडम से दूर एक जैन्टिल मेन की छवि वाले कुंबले का व्यक्तित्व कितना सौम्य और सधा हुआ है इसकी बानगी हमसबने देखी.....जब सन्यास की घोषणा के बाद स्टेडियम में उनके साथियों और दर्शकों से उन्हें भावभीनी विदाई मिली...
40-45 साल से क्रिकेट की दुनिया को करीब और बारीकी से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी भी मानते हैं कि किसी भारतीय क्रिकेटर को ऐसी विदाई मिलते, उन्होंने नहीं देखी...
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