Monday, August 25, 2008

काश....!!!

कुछ बींधता सा है,मुझे....
अजीब सी चुभन होती है,
उसके चले जाने से.....
उसका न होना,
उसके अहसास को और बढ़ाता है
लेकिन साथ ही ये भी जताता है......
कि दोस्त तो होते ही नहीं
ये तो अपनी सहूलत,
अपना गुणा-भाग होता है.....
शायद जिसे दोस्ती का नाम दे दिया जाता है......।
काश......!!!!! ये सच नहीं होता।

3 comments:

Anwar Qureshi said...

उसके अहसास को और बढ़ाता है
लेकिन साथ ही ये भी जताता है......
कि दोस्त तो होते ही नहीं
ये तो अपनी सहूलत,
अपना गुणा-भाग होता है.....
शायद जिसे दोस्ती का नाम दे दिया जाता है......।
बहुत अच्छा लिखा है ..

Asha Joglekar said...

बहुत अच्छा !

अजय शेखर प्रकाश said...

तनु जी, मुझे लगता है आप दोस्ती या दोस्त शब्द का मतलब नहीं समझ पायी हैं।ये कविता भी आपने गुणा-भाग करके लिख डाला है। मैं यहां दोस्ती की परिभाषा नहीं देना चाहता, क्योंकि दोस्ती को परिभाषा की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। जिन्हें आप दोस्त समझ रहीं होंगी, हो सकता है वो गुणा-भाग हो। आप किसी से जबर्दस्ती दोस्ती नहीं कर सकती, ये तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। दोस्ती को सिर्फ दिल और दिमाग की कसौटी पर परखा जा सकता है। बस आप से यही कहना चाहूंगा कि अपने दिल और दिमाग की खिड़की खुली रखिए, सच्चे और अच्छे दोस्त की पहचान खुद हो जाएगी। आपके ब्ल़ॉग में लिखी अन्य रचनाओं को पढ़ने के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात मैं ये कहना चाहूंगा कि आपमें साहित्य सृजन की असीम प्रतिभा छिपी हुई है। थोड़ी सी मेहनत,थोड़ा और अध्ययन आपको साहित्य क्षेत्र में अच्छी पहचान दिला सकता है। मैं तो आपकी रचनात्मक क्षमताका कायल हो चुका हूं। बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद!-अजय शेखर प्रकाश, वॉयस ऑफ इंडिया