Thursday, August 28, 2008

दोहरी ज़िंदगी......

दोहरी ज़िंदगी.....
हम सभी जीते हैं।
चेहरे पे चेहरा लगाते हैं,
रोज़ नक़ाब पहनते हैं,
हंसते हैं,बतियाते हैं
दूसरे का गला काटते हैं
और आगे बढ़ते हैं.....
लेकिन
इसी कवायद में
कुछ लोग पीछे रह जाते हैं
जो नक़ाब नहीं पहन पाते
और वो नहीं कर पाते
जो सब करते हैं.....आगे बढ़ने के लिए.....
लेकिन ये कहां बढ़ जाते हैं और क्या
पाते हैं ........
ये उन्हें पीछे छोड़ने वाले
शायद कभी समझ नहीं पाते.....।।

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