Saturday, August 23, 2008

वो लड़की...

भोली
मासूम
चंचल आंखे
खूबसूरत मुस्कुराहट....
कहीं खो गईं
ये सारी बातें
जब जाना
कि वो,
बिक चुकी है...
एक कसाई के हाथ
अपनी मंज़ूरी से.....
अचानक,
नासूर बन गई,वो मुस्कुराहट
फरेब नज़र आने लगा
वो चेहरा
सोच भी नहीं पा रही थी,मैं...
कैसे देखती होगी वो,आईना
कैसे संवारती होगी,अपने आप को,
कैसे जवाब देती होगी,
अपने अक्स को.......
क्या यही उसका होना है.......?
कैसे संभलता होगा,उससे वो जिस्म
जिसमें वो कसाई अपनी बोटियां
तलाशता होगा.....
कैसे बर्दाश्त करती होगी,
अपने चूर-चूर होते जिस्म को
कैसे झेल पाती होगी
उस वहशी के वो हाथ
जो बढ़ते हैं,
उसी की तरह दिखने वाली
हर गर्म बोटी की तरफ
औऱ..........
कैसे स्वीकार करती होगी
इस कड़वे सच को
कि उसने बेचा.....
अपने आप को ही नहीं
अपने मां-बाप
अपना शहर
अपनी पढ़ाई
अपनी परवरिश
और
अपने जन्म को
सिर्फ सिक्का-ए-रायज़ुल-वक्त के लिए.................!!!!!!