Friday, August 15, 2008

अभिनव बिन्द्रा

आज सुबह जैसे ही टीवी ऑन किया...सामने ऩजर आया अभिनव बिंद्रा ,ओलंपिक मे गोल्ड मेडल हासिल करता हुआ.....।इतनी खुशी हुई जैसे ज़ाती तौर पर मुझे कोई उपलब्धि हासिल हुई हो।पता नही शायद देशभक्ति का ही जज्बा था,जिसने आंखो में आंसू छलका दिए।तिरंगे को लहराता देखकर अपने राष्ट्रगान की धुन सुनते अभिनव बिंद्रा की खामोशी और सहजता वो सब कुछ बयां कर रही थी जिस वजह से अभिनव भारतीय गौरव को बढा पायालेकिन जैसे ही ये एहसास हुआ कि ये सौभाग्य भारत को सन अस्सी के बाद अब हासिल हुआ है थोड़ी शर्मिन्दगी महसूस हुई।उन्नीस सौ अस्सी के बाद पहली बार ओलम्पिक में भारत को गोल्ड मेडल यानि मेरे जन्म के बाद भारत का ये पहला गोल्ड मेडल पाने का स्वर्णिम मौका जिसे मैने भाग्यवश नहीं गंवाया औऱ एक एक क्षण का आनन्द लिया...क्योंकि ये मेरी जैनरेशन का पहला गोल्ड मैडल था।
गर्व और शर्म की स्थिति थोड़ा असहज तो कर रही थी लेकिन जब अभिनव के शान्त सौम्य और सरल चेहरे को मुस्कराते पाया तो एक बार फिर गर्व के साथ खुशी हुई।मात्र पच्चीस साल के अभिनव को देख कर सिर्फ यही लगा कि शायद उन्हे खुद पर इतना यकीं था कि ये पदक इस बार उसी का सीना चौड़ी करेगा।अभिनव बिंद्रा,जिसकी कामयाबी पर पूरा देश झूम उठा इतना शातंचित्त खडा नजर आया मानो कुछ हुआ ही नहीं....इतनी सहजता तो शायद मुझमें नहीं ।
दस बजे इस खबर के आने के बाद पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ी और तुरन्त शुरु हुआ बधाईयों का सिलसिला ....हर टीवी चैनल पर कोई न कोई राज्य का मुख्यमंत्री अभिनव की खुशिंया बांटने के साथ साथ उसे सौगात देने की भी घोषणा कर रहा था।चारों तरफ फोनो सुनाई दे रहे थे और हर कोई अपनी तरह से आगे आने की कोशिश कर रहा था।बिन्द्रा पर राज्यसरकारों द्वारा दस लाख,पांच लाख,पच्चीस लाख के इनामों की बौछार हो रही थी और उधर बीजिंग में बिंद्रा शांतचित्त अपनी उपलब्धि के साथ खड़ा था।
खुशी तो बहुत हुई बिन्द्रा के गोल्ड मेडल जीतने पर लेकिन एक सवाल जो बार बार जहन में उठ रहा था,मायूस भी कर रहा था।सवाल सिर्फ इतना था कि आखिर
क्यों सन अस्सी के बाद आज,,,,,क्यो अट्ठाईस साल का वक्त लग गया एक बिन्द्रा को सामने आने में....क्या हमारे बीच या चारों तरफ फैली करोंड़ो-अरबों की आबादी में कोई और बिंद्रा नही....।
और उससे भी ज्यादा अफसोस होता है ये देखकर और सोचकर कि आज जब एक बिंद्रा जीतता है तो लाखों करोड़ो की बौछार होती है लेकिन क्या यही लाखों रुपए तब सामने आ पाते हैं जब हममे से कोई बिन्द्रा बनने की कोशिश कर रहा होता है...और अपनी आंखो में ओलंपिक में जाने का और पदक हासिल कर देश का नाम रौशन करने का सपना संजो रहा होता है।जवाब है...शायद नहीं.
नहीं इसलिए क्योंकि हम सब जानते है खिलाडियों के साथ क्या भेदभाव होता है किस तरह की राजनीति होती है...क्रिकेट के अलावा किसी और खेल को तवज्जोह ही नही दी जाती ।
हम ये बिल्कुल नही भूल सकते कि अभिनव को इस मुकाम ,इस उंचाई तक पहुंचाने में सिर्फ और सिर्फ उनके परिवार का ही हाथ है...क्योंकि बिंद्रा भी अगर उसी तबके से ताल्लुक रखते जो सरकार की तरफ मदद की आस लिए देखता है तो शायद आज भी ओलम्पिक में गोल्ड मेडल हम सिर्फ ख्वाबों में ही पाते।
हम सबको ये अच्छी तरह से मालूम है कि क्यों हमने अट्ठाईस साल का इंतजार झेला है इस पदक के लिए........ऐसा बिल्कुल नहीं कि करोंड़ो अरबों में कोई प्रतिभा नहीं लेकिन लाख टके का सवाल सिर्फ इतना है कि क्या कभी किसी ने ये कोशिश की ....जिस तरह से आज बिंद्रा पर सौगातें लुटाई जा रही हैं अगर इनमें से थोडी भी खेलों को प्रोत्साहित करने या खिलाडियो को आगे बढाने में खर्च की जाती तो शायद हम हर बार अपना सीना चौड़ा कर पाते।
बारहाल बिंद्रा की खबरों को देखते देखते ही पता चला कि पिछली बार एथेंस में सिर्फ एक प्वाइंट से पीछे रहने वाला सत्येन प्रसाद नामका एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी पूरे साल सिर्फ ढाई लाख के धनुष के लिए तरसता रहा लेकिन किसी ने उसकी जरुरत पूरी नही की।ज़ाहिर तौर पर उसकी माली हालत ऐसी नहीं रही होगी कि वो खुद से उस धनुष को खरीद पाए,उसने अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश की कि शायद खेलों के मद में आने वाली राशि में से थोड़ा सा भी उसे मिल पाऐ लेकिन नहीं...नतीजा सिफर ही रहा।शायद उसे कोई हक ही नहीं सपने देखने का ,उन्हें संजोने का क्योंकि वो उस वर्ग विशेष से ताल्लुक नहीं रख पाता जिन्हे दो जून की रोटी के लिए पसीना नहीं बहाना पड़ता है।यहां ये सिर्फ इसलिए बताया है कि ये तो सिर्फ एक सत्येन प्रसाद है लेकिन ऐसे न जाने कितने सत्येन प्रसाद होंगे जो पैसों के अभाव में अपने सपनों को दम तोड़ते हुए देखते हैं।
कुछ समझ नहीं आता कि क्यो और कब तक हम इसी तरह से भ्रष्टाचार को और बर्दाश्त करेंगे क्यों कोई निस्वार्थ कोशिश नही कर सकता इन सब बातों का जवाब देने की .....क्यों हमारे राजनेता अपने दावपेंच और अपनी कुर्सी के मोह को छोडकर थोड़ी सी भी देशसेवा की भावना को जाग्रत नहीं कर सकते .....लेकिन फिर भी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है और शायद वो दिन आए जब हममें से कोई आगे आए और देश को स्वर्णिम शिखर तक ले जाएं ताकि कल जब सुबह तो अभिनव बिंद्रा और सत्येन प्रसाद दोनों पर ही हम सबको गर्व हो........

1 comment:

Devesh Gupta said...

bilkul theek kaha aapne desh main kitne hi abhinav hoonge jo desh ka naam roushan kar sakte hain lakin unke paas abhinav jaise resources nahin hoonge .. kaash hamari sarkar ya corporate sponsrship is disha main kuch soch paye