Monday, November 7, 2011

एक मुक्तिबंधन !!


तुम प्रेम करते हो..
पर क्यों तुम्हारा प्रेम
वाणी से वंचित रहता है
कई पर्दों के ज़रिए..
उस पर पर्दा रहता है
जानती हूं
मौन की भाषा होती है...
लेकिन कब तक
कोशिश जारी रखूं...
उन अनगढ़ शब्दों को
स्वयं तराशती रहूं....
प्रस्तर खंड बनकर....
जब्त करती रहूं...
इंतज़ार कब तक हो..
तुम्हारे मौन के टूटने का
संसार को रचने का...
चाहिए
एक मुक्तिबंधन...!!

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर काव्यरचना ..

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर और सशक्त रचना!



संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Ek ziddi dhun said...

muktibandhan...!

दीपिका रानी said...

भावप्रवण...