Thursday, October 20, 2011

शुक्रिया ज़िंदगी...





कहते है अकेले रहो तो सोच समझ के सोचो
और भीड़ मे हो तो सोच समझ के बोलो......
अकेले रहना भीड़ मे रहने से ज्यादा खतरनाक होता है....
जहां बोलना ....
उम्रभर का इंतज़ार करता है
और
सोचना जैसे.....
बुनियादी जरुरत बन जाता है...
ये सोच कितने लाख हजार सवालो के जवाब अपने आप देदेती है
बिन मांगे...बिन कहे...
ना मालूम हर बार ख्वाहिशें...
ख्वाबो की तरह क्यों रफ्तार पकड़ती हैं
हर बार एक नयी शक्ल अख्तियार करती है
अब यकीं बढ़ गया है अपने आप पर
अब कुछ धुंधलाता नही
सब शफ्फाक....
अब अपनी शिनाख्त खुद ही कर लेती हूं
सही या गलत
सब मेरा
कल भी आज भी
सब कुछ मेरा
जरुरतें जो पूरी नही हुईं......
शायद एक्सटिंट हो गयीं हैं
सपनो ने जिंदगी को एक रफ्तार दी....
हर बार एक नयी उर्जा के साथ....
जिंदगी के किसी हिस्से से कोई गिला नही....
तुमसे भी नहीं...

शुक्रिया ज़िंदगी !!

6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब यकीं बढ़ गया है अपने आप पर
अब कुछ धुंधलाता नही
सब शफ्फाक....
अब अपनी शिनाख्त खुद ही कर लेती हूं
सही या गलत
सब मेरा

ज़िंदगी के लिए एक नजरिया यह भी ... गहन अभिव्यक्ति

संजय भास्‍कर said...

बिन मांगे...बिन कहे...
ना मालूम हर बार ख्वाहिशें...
ख्वाबो की तरह क्यों रफ्तार पकड़ती हैं
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

महुवा said...

शुक्रिया संगीता जी..संजय जी :)

दिगम्बर नासवा said...

प्रभावी लिखा है बहुत ..ख्वाहिशें जाती नहीं अहिं नयी शक्ल अख्तियार कर लेती हैं ... सच कलह ...

SK Singh said...

ख्वाबों की बारिश शायद खत्म हो रही है...

Anoop Kumar Singh said...

आज पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर काफी अच्छा लगा कुछ पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगी
"सही या गलत
सब मेरा
कल भी आज भी
सब कुछ मेरा"
https://www.facebook.com/anoopdreams