Tuesday, March 30, 2010

मालूम नहीं....

मेरे घर के सामने खड़ा..
नीम...
रोज़ जल जाता है,
हां....
नीम का ये पेड़ कट-कट कर,
गिर जाता है...
कई मर्तबा ....
पत्ते जब रफ्ता रफ्ता गिरते हैं..
ये जिया भी उसी के साथ...
कहीं गुम जाता है....
टेढ़ी मेढ़ी सी ये सड़कें
नज़र आती हैं आजकल..
हल्के पीले..भूरे...सूखे पत्तों से
लबरेज़ ..पर,
हरा पन नहीं दिखता..
दूर दूर तक नहीं.
गुम गया है...जैसे मेरा भी मन
पहाड़ों के पार से आती और
मेरे अहाते में बिछती धूप
टोह लेने आती है..पर
अब गर्माहट नहीं सुहाती
ये मन बेचैन ....
बूंदो के लिए...
भीगने के लिए....
हरेपन के लिए
कब बीतेगा ये मौसम
सूखा...सख्त...गर्म मौसम
झुलसाने वाला...जलाने वाला
कब बरसेगी फुहार...
कब थमेगी
कब तक थमेगी...
बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....

17 comments:

Amitraghat said...

"अच्छा लिखा आपने पतझड़ में तो अक्सर ये ही अनुभूतियाँ होती हैं......"

विजयप्रकाश said...

जीवंत वर्णन...बसंत के बाद और सावन के पहले का मौसम ऐसा ही होता है.

Vikas Kumar said...

कविता के माध्यम से एक सुन्दर अभिव्यक्ति.

मौसम और ज़िन्दगी दोनों में बहुत समानता है.
बहार और पतझर तो ऐसा लगता है कि इन्सानी ज़िन्दगी के सबसे ज्यादा करीब है.

शोभा said...

bahut sundar abhivyakti.

Udan Tashtari said...

मौसम का असर दिल पर..दिल का भावों पर..और भावों का कलम पर...कल का कविता पर..सुन्दर!!

M VERMA said...

कब बरसेगी फुहार...
कब थमेगी
कब तक थमेगी...
बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....
सुन्दर भाव और सम्वेदना की रचना

Fauziya Reyaz said...

sab mausamo ke apne rang...apni achhaiyan aur buaraiyan hoti hai...

aapne achha likha hai...keep it up

डॉ .अनुराग said...

मेरे अहाते में बिछती धूप
टोह लेने आती है..पर
अब गर्माहट नहीं सुहाती
ये मन बेचैन ....


फिर किसी मौसम में.. .किसी दरख्त के नीचे ..जाने कब उम्मीद का एक फूल उगेगा .ओर फेंकेगा ढेर सारे रंग....ओर मन भीग जायेगा उस रंगों की बारिश में

डिम्पल मल्होत्रा said...

इक मौसम जाता है तो नया भी आता है..बसंत जरूर आएगी...

संजय भास्‍कर said...

बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....
सुन्दर भाव और सम्वेदना की रचना

अजित गुप्ता का कोना said...

आपने नीम की उपमा क्‍यों दी हैं कुछ समझ नहीं आया? नीम तो सदैव हरा ही रहता है। कभी सूखता नहीं।

pallavi trivedi said...

मौसम पर पतझर आये तो आये...मन पर पतझर नहीं आना चाहिए!

डॉ. रामगोपाल जाट said...

Shandar Tanu g


Dr Ramgopal

Chandan Swapnil said...

pata nahi inn gaganchumbi attalikyon ke liye kab tak neem kattain rahigey

Avinash Chandra said...

Behad arthpurn, bahut khubsurat

Puja Upadhyay said...

बैरागी बयार न हो तो भिगाते सावन का मजा भी तो नहीं आएगा. तुम्हारे आँगन बैठ कर देख ली हमने भी गर्मी...कुछ और कविता लिख लो फिर बारिश आये बेहतर होगा :)

Anonymous said...

achchha hai likha karo dear