मेरे घर के सामने खड़ा..
नीम...
रोज़ जल जाता है,
हां....
नीम का ये पेड़ कट-कट कर,
गिर जाता है...
नीम का ये पेड़ कट-कट कर,
गिर जाता है...
कई मर्तबा ....
पत्ते जब रफ्ता रफ्ता गिरते हैं..
ये जिया भी उसी के साथ...
कहीं गुम जाता है....
टेढ़ी मेढ़ी सी ये सड़कें
नज़र आती हैं आजकल..
हल्के पीले..भूरे...सूखे पत्तों से
लबरेज़ ..पर,
हरा पन नहीं दिखता..
दूर दूर तक नहीं.
गुम गया है...जैसे मेरा भी मन
पहाड़ों के पार से आती और
मेरे अहाते में बिछती धूप
टोह लेने आती है..पर
अब गर्माहट नहीं सुहाती
ये मन बेचैन ....
बूंदो के लिए...
भीगने के लिए....
हरेपन के लिए
कब बीतेगा ये मौसम
सूखा...सख्त...गर्म मौसम
झुलसाने वाला...जलाने वाला
कब बरसेगी फुहार...
कब थमेगी
कब तक थमेगी...
बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....
17 comments:
"अच्छा लिखा आपने पतझड़ में तो अक्सर ये ही अनुभूतियाँ होती हैं......"
जीवंत वर्णन...बसंत के बाद और सावन के पहले का मौसम ऐसा ही होता है.
कविता के माध्यम से एक सुन्दर अभिव्यक्ति.
मौसम और ज़िन्दगी दोनों में बहुत समानता है.
बहार और पतझर तो ऐसा लगता है कि इन्सानी ज़िन्दगी के सबसे ज्यादा करीब है.
bahut sundar abhivyakti.
मौसम का असर दिल पर..दिल का भावों पर..और भावों का कलम पर...कल का कविता पर..सुन्दर!!
कब बरसेगी फुहार...
कब थमेगी
कब तक थमेगी...
बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....
सुन्दर भाव और सम्वेदना की रचना
sab mausamo ke apne rang...apni achhaiyan aur buaraiyan hoti hai...
aapne achha likha hai...keep it up
मेरे अहाते में बिछती धूप
टोह लेने आती है..पर
अब गर्माहट नहीं सुहाती
ये मन बेचैन ....
फिर किसी मौसम में.. .किसी दरख्त के नीचे ..जाने कब उम्मीद का एक फूल उगेगा .ओर फेंकेगा ढेर सारे रंग....ओर मन भीग जायेगा उस रंगों की बारिश में
इक मौसम जाता है तो नया भी आता है..बसंत जरूर आएगी...
बैराग पैदा करती ये बयार...
मालूम नहीं....
सुन्दर भाव और सम्वेदना की रचना
आपने नीम की उपमा क्यों दी हैं कुछ समझ नहीं आया? नीम तो सदैव हरा ही रहता है। कभी सूखता नहीं।
मौसम पर पतझर आये तो आये...मन पर पतझर नहीं आना चाहिए!
Shandar Tanu g
Dr Ramgopal
pata nahi inn gaganchumbi attalikyon ke liye kab tak neem kattain rahigey
Behad arthpurn, bahut khubsurat
बैरागी बयार न हो तो भिगाते सावन का मजा भी तो नहीं आएगा. तुम्हारे आँगन बैठ कर देख ली हमने भी गर्मी...कुछ और कविता लिख लो फिर बारिश आये बेहतर होगा :)
achchha hai likha karo dear
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