इस बार फिर.....चोट लगी है.......
ह्रदय पर...
आघात ..वेदना...तड़प...आंसू....गम...
ह्रदय पर...
आघात ..वेदना...तड़प...आंसू....गम...
ये सारी बातें बेमानी सी लगती हैं अब....
सुन्न हो चुका हो....मेरा मन ....
जैसे लकवा ......मार जाये ....
अपाहिज..
किसी को कर जाये...
अपाहिज..
किसी को कर जाये...
जीवन के झोल में उलझने के बाद...
तलाश ज़ोर मारती है...
मां का आंचल ...
दूर कहीं जलेबी के लिए
जिद्द करता सा...
उलझन नहीं सुलझती
तलाश करती है
उस जिया की
जो मां की ही तरह.....
पोषित करता पल पल
पोषित करता पल पल
जिसकी छांह में
मिलती ठंडक .....
किसी विशाल वृक्ष की.......पर मानो
मेरे लिए कोई वृक्ष नहीं....
कोई छांह नहीं .....
और ये धुप मुझे जीने नहीं देती
एक भंवर...कोई बवंडर...
कुछ खींच लाता है...बाहर...
इसी धुप में
मेरे साथ जलने...झुलसने के लिए....
एक मध्धम रौशनी...चांदनी....
नज़र नहीं आती...
जीने के लिए....
एक बार ...सिर्फ एक बार ...
तुम
मेरी माँ बन जाओ......
सिर्फ एक बार मुझे छांव दे जाओ.....
सिर्फ एक बार....!!
12 comments:
अच्छी रचना...
सुन्दर तरीके से पेश किया आपने, दिल क दर्द ।
वाह!! शानदार प्रस्तुति..एक बेहतरीन रचना!
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
वाह!! शानदार प्रस्तुति..एक बेहतरीन रचना!
हम्म्म्म!!
achi rachna
उदास रचना.........."
achi aur shandar rachna
mere blog gyansarita at blogge.com par aap ka swagat hai
aapne kewal Bhaavon ko vyakt kiyaa hai vah bhi 'ek apne me khoyi mugdhaa baalikaa' ki bhaanti. isme anyon ko tab hi ras aayegaa jab usme kisi bhi tarah ki gati milegi. Shaabdik yaa Samvedanaa ke star par abhi majane ki zaroorat hai.
WAH KYA BAAT HAI.
AISE HI LIKHATE RAHIYE
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
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