इस बार फिर.....चोट लगी है.......
ह्रदय पर...
आघात ..वेदना...तड़प...आंसू....गम...
ह्रदय पर...
आघात ..वेदना...तड़प...आंसू....गम...
ये सारी बातें बेमानी सी लगती हैं अब....
सुन्न हो चुका हो....मेरा मन ....
जैसे लकवा ......मार जाये ....
अपाहिज..
किसी को कर जाये...
अपाहिज..
किसी को कर जाये...
जीवन के झोल में उलझने के बाद...
तलाश ज़ोर मारती है...
मां का आंचल ...
दूर कहीं जलेबी के लिए
जिद्द करता सा...
उलझन नहीं सुलझती
तलाश करती है
उस जिया की
जो मां की ही तरह.....
पोषित करता पल पल
पोषित करता पल पल
जिसकी छांह में
मिलती ठंडक .....
किसी विशाल वृक्ष की.......पर मानो
मेरे लिए कोई वृक्ष नहीं....
कोई छांह नहीं .....
और ये धुप मुझे जीने नहीं देती
एक भंवर...कोई बवंडर...
कुछ खींच लाता है...बाहर...
इसी धुप में
मेरे साथ जलने...झुलसने के लिए....
एक मध्धम रौशनी...चांदनी....
नज़र नहीं आती...
जीने के लिए....
एक बार ...सिर्फ एक बार ...
तुम
मेरी माँ बन जाओ......
सिर्फ एक बार मुझे छांव दे जाओ.....
सिर्फ एक बार....!!