Wednesday, January 13, 2010
गुज़रे लम्हात....
गुज़रे लम्हात बड़े रंगीनियों से शराबोर लगते हैं...मुझे...मेरे दिल को...मेरी कशिश को शायद थमने देना नहीं चाहते....दूर कहीं खोए..दिल के दरिचो में थमे गुज़रे लम्हात...हां वोही सारे लम्हात...जो सिर्फ पशेमा करते....तुम्हारे इंतज़ार को....तुम्हारी आहट को...तुम्हारे इस शहर को रौशनाई से गुल्ज़ार करते.....बरसाते रंगीनियों को.....उन तमाम पेड़ों पर खूबसूरत हरे पत्तों की बरसात करते....जो मेरे सूखे-सर्द मौसम के साथी थे......कोई नहीं जानता पर...इस मौसम में भी मेरे अंदर पलाश का सुर्ख रंग भरते....वो सारे अमलतास मुझे मेरे सरमाया सरीखे लगते....कहां जाऊं...किसको बताऊं...कैसे छुपाऊं.....तुम्हारा ये शहर क्यों इतना चहक रहा है....कैसे इतना गुल्ज़ार आसमां यूं बरस रहा है.....क्यों इस कुहासे में मेरी याद के रंग और रौशन लग रहे हैं....क्या तुम्हें मालूम.....कि तुम्हारी हर याद के रंग में तुम नज़र आते हो.....ये कभी कभी होने वाली बारिश अब इतनी फुहारें भर रही है कि कभी कभी तो मुझे मेरे दामन का छोर छोटा मालूम पड़ता है.....किसने कहा...कि यादें तस्वीरों में कैद...मासूम लगती हैं....मेरा दिल...काश कोई देख पाता...पता नहीं कितने हज़ार रंग हैं तुम्हारे वहां छिपे....और कितनी मुस्कुराहटें.....ना मालूम कब से दबी ढकी मेरे अंदर....तुम्हारी उसी एक हंसी की मुंतज़िर....वो सुनहरा चमकीला हाईलाईटर मिल जाए..... मैं उन सारी मुस्कुराहटों को दिखाऊं और शायद...ये आसमां भी तुम्हारी उन मुस्कुराहटों के रंग से शर्मा जाए और यूंही बस ढक जाए....जैसे मैं......कोई मौसम तय नहीं....कोई दिन तय नहीं....कोई लम्हा तय नहीं....जिसे मैं कहूं कि तुम्हारा मौसम नहीं....कोई नहीं जानता ....वो हर मौसम सर्द एहसास की तरह जिसमे तुम नहीं....इसलिए ना सर्दी ना गर्मी कोई सितम नहीं नुमायां कर पाया इस ज़हन पर....क्योंकि वहां तो तुम...तुम्हारा मौसम....तुम्हारा एहसास....पता नहीं कौन कमबख्त कहता है....कि यह बारिश का मौसम शायद यादो से घिरने का ही मौसम होता है.....तभी बरस जाती है यह बिन कहे...बिन पूछे.....यूं ही बेसाख्ता......तुम नहीं जानते...कुछ भी मंजूर...जिंदगी में...पर तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं...सब अधूरा सा...मैं भी....मेरा मौसम भी.....लेकिन अब सब पूरा होता दिखता है.....शायद तुम्हारी आमद का अंदाज़ा हो गया है....मेरे साथ साथ ....सबको....ये हवा...ये रौशनी....क़ायनात का हर ज़र्रा....बड़ी मासूमियत के साथ झूमता नज़र आ रहा है....मेरे साथ...
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15 comments:
इश्क... प्यार.. मोहब्बत... ने बेहतरीन राइटर बना दिया... क्या जादू है कलम में..
बेहतरीन प्रवाहमयी लेखनी..बहुत खूब!!!
अच्छे अंदाज मे रचा गया ,बधाई
तुमको पढता हूँ तो कई नज्मे याद आती है ... आज "बैठे रहे देर तक तस्सुवारे जानां लिए हुए "......याद आयी ....
आपकी पोस्ट का बहता हुवा प्रवाह ....... एक ही साँस में पढ़ लिया .........
निसार जी निसार इस जादू लिखे पर
नज़्म, कविता, खत , डायरी या एक अनूठी ब्लौगिंग...???
आपके लिखे शब्द, एहसास...लेखनी इस मुएँ दिल को अपने इर्द गिर्द बाँध लेती है
dil ko chu gai...behtarien..lekhni
are wah! sard mausam aur suhana ho gaya
ख़ूबसूरत लेकिन अबूझ
वैसे कई दफ़ा ये रहस्यवाद ही ख़ूबसूरत होता है, अपील करता है
आपकी पोस्ट का बहता हुवा प्रवाह ....... एक ही साँस में पढ़ लिया .........
NICE..............
ati uttam rachna
aap larki nahi lagti hai...andar kuch problem hai kya...bachpan me pagal thi kya....
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