Sunday, August 30, 2009

शायद....

शायद.......



इक मुद्दत से जिसे देखा नहीं....
आज भी वो ज़हन से उतरा नहीं.......
आज भी वो टूट के आता है याद.......
आज भी रात भर नींद आती नहीं......
आज भी सच्चा है मेरा इश्क़......
आज भी वादा मेरा झूठा नहीं.....
आज भी क़ायम हूं,अपने ज़ब्त पर......
आज भी टूट कर बिखरा नहीं..........



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तुम्हें आज भी बिन आवाज़ बुलाती हूं...
कि अभी ज़ब्त का मौसम नहीं गुज़रा....
तुम्हारे साथ आज भी जन्नत की सैर पर जाती हूं....
वहीं, जहां पहाड़ों पर अब तक बर्फ जमीं है.....
तुम्हारी ही बेख्याली में....
खुशबु के जज़ीरो से सितारों की हदों तक....
सब जगह तलाश आती हूं पर....
क्या करुं जब...
इस शहर में सबकुछ पाती हूं....
पर तुम्हें नही देख पाती...
क्या समझ पाते हो...
इस शहर में सबकुछ है....सिर्फ तुम्हारी ही कमी है......

13 comments:

निर्मला कपिला said...

तनु जी बहुत सुन्दरता से आपने मन के भावो को शब्द दिये हैं दिल को छू गयी आपकी रचना शुभकामनायें

mehek said...

jaise di ke ehsaas ko lafz mile ho,bahut sunder

दिगम्बर नासवा said...

khoobsoorat ehsaas में rachi sundar rachna है ....... मन के jajbaaton को bakhoobi utaara है

Puja Upadhyay said...

क्या कहूँ तनु, लगता है कितने ही मेरे ख्याल उड़ेल कर रख दिए हैं तुमने...इन सवालों का कोई जवाब भी होता है की बस यूँ ही तड़पने को जिंदगी होती है.
खुली आँखों से जिसे देख नहीं सकते वो ख्वाबों में यूँ करीब खड़ा होता है ki सुबह आँख खुलने पर यकीन नहीं होता ki वो ख्वाब था.

ओम आर्य said...

इस शहर में सबकुछ पाती हूं....
पर तुम्हें नही देख पाती...
क्या समझ पाते हो...
इस शहर में सबकुछ है....सिर्फ तुम्हारी ही कमी है......वाह क्या बात है?कमाल की अभिव्यक्ति!

परमजीत सिहँ बाली said...

मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

अमिताभ मीत said...

क्या समझ पाते हो...
इस शहर में सबकुछ है....सिर्फ तुम्हारी ही कमी है......

बहुत खूब क्या कहूँ .... न जाने कितने दिलों की बात है ये

डॉ .अनुराग said...

गोया दो चेहरे आस पास रख दिए है....सोचता हूँ पहले किसे आवाज दूँ....

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

Kya khoob likhti hein...shabdo aur bhaavo ka itna sunder samanvya .. waah kya baat hai ...badhaayee...

गौतम राजऋषि said...

एक तो इतनी देर से आ रहा हूँ और अब पढ़ने के बाद सोच रहा हूँ कि ये मेरी कलम से क्यों नहीं है...

शब्द सारे शब्द, हर पंक्ति जैसे अपनी ही बात का बयान हो...

सोचता हूँ कभी आपको एक और "तनु" के बारे में बताऊँ....!!!!

Ek ziddi dhun said...

Tanu ka mahua - ek meethi udas dhun

ओम आर्य said...

बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की शुभकामना के साथ
ओम आर्य

अबयज़ ख़ान said...

I am biggest Fan of Ur Urdu.. No words for Comments.. In Alfazo me Lazzat hai.. In Alfazo me Jadu hai...