सपने खत्म नहीं होते.....आंखे उन्नीदीं नहीं होती....सोते,जागते...सपनो को लिए गजब संसार बनाए घूमती हैं......वक्त बस गुज़रता सा जाता है......दिन बीतता है.....रात उतरती है....कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं....सबकुछ अजीब एक खामोशी के साथ होता रहता है......सूरज की तपिश.....सावन की बरसात....कहीं असर ही नहीं होता.....मेरे आसपास तुम्हारी खुशबु खत्म नहीं होती......इन सांसो की आवाज़ बंद नहीं होती.....इंतज़ार की घड़ियां बोझिल नहीं होती.......अंधेरा...उजाला बिना कुछ फर्क डाले आंगन तक आहट दे....लौट जाता है... उसी पल.....
अजीब कशमकश भरा ये सफर कहां लेकर जाता......कहां खत्म होता.....कुछ समझ नहीं आता....और कोई नहीं समझाता....हर रोज़.....बस यूंही.....एक और सफर....दिनरात का....अंधेर उजाले का.....सांसो के चढ़ने-उतरने का.....
8 comments:
तन्हाई जब रात की अन्धेरे मे कुकरमुते की तरह जिस्म के हर एक पोर से उगती है तो सपने उन्हें काटकर कही ले जाती है जो पूरी तरह से साफ नही होती है ........शायद सपने ऐसी ही होती है.और ऐसे ही दिन रात चलते रहते है.
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है---गुलज़ार
wakt yu hi paas khada dekhta rahta hai......batein ...sapne...yun hi chalte rahte hai
खूबसूरत-तन्हाई, नींद और ख्वाब
आहा! कितना खूबसूरत.
dil ko yahan rakhne ke liye shukriya
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सूरज की तपिश.....सावन की बरसात....कहीं असर ही नहीं होता.....मेरे आसपास तुम्हारी खुशबु खत्म नहीं होती......इन सांसो की आवाज़ बंद नहीं होती.....इंतज़ार की घड़ियां बोझिल नहीं होती.......
....bahut hi sundar prastuti..
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