Tuesday, March 17, 2009

हमारे राजनेता और हम......

हमारा नेता कैसा हो.....(फलां आदमी) जैसा हो.....ये नारा मैं बचपन से सुनती आ रही हूं....छोटे-मोटे चुनाव...गली-मौहल्ले के. निगम के...लोकसभा के या फिर विधानसभा के, चुनाव कैसे भीं हो....नारे एक ,वादे एक, दिखावे एक और हसरतें भी एक.....लेकिन सिर्फ चेहरे अनेक...ऐसा क्यों ?? राजनीति के ओर-छोर, उलझाव-सुलझाव ने मुझे कभी आकर्षित नही किया....लेकिन पता नहीं कैसे इसकी गंदगी ज़रुर नज़र आनी शुरु हो गई.....

मैं जब छोटी थी...तब की एक घटना याद है....मेरी एक कज़िन की शादी थी...और उसी दिन राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी...काफी अफरातफरी का माहौल बन गया था...तरह तरह की बातें हो रहीं थी....काफी लोग दुखी भी थे....दुख तो मुझे भी हुआ था...राजनैतिक कारणों से नहीं बल्कि इसलिए...क्योंकि उनका चेहरा मेरे लिए सिर्फ एक खूबसूरत और सौम्य व्यक्तित्व को दर्शाने वाला था...उस वक्त तो मैं राजनैतिक पार्टियों के नाम से भी वाकिफ नहीं थी....मेरे लिए वो महज़ एक खूबसूरत दिखने वाले इंसान की विपरीत परिस्थितियों मे होने वाली मौत थी....लेकिन वो राजनीति की कड़वी सच्चाई से रुबरू कराने वाला पहला पन्ना भी था....जब मैनें सुना कि ऐसा तो चलता ही है पॉलिटिक्स में......

जहां तक मुझे याद पड़ता है...मुझे कभी किसी नेता के काम ने आकर्षित नहीं किया...ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया....जिसने किसी भी नेता का कद बढ़ाया हो या उसे नेता शब्द को सार्थक करता हो....धीरे-धीरे मुझे समझ आने लगा था कि ये नेता तो हमीं चुनते हैं.....वोट की ताकत....आम जनता की ताकत....जैसे शब्द मेरे कानों के परिचित होने लगे....लेकिन नेता शब्द का मतलब जो मेरी समझ मे आ रहा था...वो था...

एक ऐसा इंसान...जो आम जनता के बीच का होते हुए भी खास होता है...क्योंकि वो उनके हक़ औऱ अधिकारों की बात करता है...जिसका व्यक्तित्व करिश्माई होता है....जो हमारी बात को ऊपर तक पहुंचा सकता है....जिसकी सच्चाई औऱ ईमानदारी के भरोसे जनता उसका अनुसरण करती है.....जो बॉस नहीं बल्कि जनता का सेवक होता है...जिसके अंदर आने वाले कल को लेकर कुछ उम्मीदों भरे सपने होते हैं.....जो जात-पात से ऊपर उठा हुआ होता है....जो धर्म के नाम पर लोगों को बांटता नहीं है.....जो समाज की बुराइयों को मिटाने की कूवत रखता है...जो हमारे देश को ऊपर उठाने का हौसला रखता है औऱ जो इतिहास की धारा को बदल सकने की औकात रखता है।

लेकिन शायद ऐसा करिश्माई व्यक्तित्व या सर्वगुणसम्पन्न नेता.....हमारे बीच ना तो आज मौजूद है और ना ही मुझे इतिहास मे झांकने पर नज़र आता है (अगर किसी की निगाह में हो तो ज़रुर बताएं).....आज जो भी कथित नेता हमारे बीच मौजूद हैं.....क्या वो हमारी किसी भी कसौटी पर खरे उतरते हैं.....अगर नहीं तो फिर वो हमारे नेता कैसे हैं....कैसे पहुंच गए वो उन पदों पर,,जिनके लायक वो हैं ही नहीं...किसने पहुंचाया उन्हें वहां....आम जनता की ताकत कैसे manipulate हो गई..... manipulate हुई भी या फिर हम और आप की रज़ामंदी से उन्हें वो ताकत मिली....माना कि पैसे वो टिकट खरीद सकते हैं....लेकिन बाकी सब.....??

अगर ये सिर्फ प्रयोग भर की राजनीति है तो फिर ऐसे प्रयोग हम साल दर साल क्यों करते जा रहें...क्या हम लोग कभी ना बदलने वाली किसी आदत या लत की गिरफ्त में आ चुके है.....या फिर हमें सिर्फ गाली देने...कोसने और हालात से समझौते वाली ज़िदगी की आदत हो चुकी है....मेरे ज़हन में अगर नेताओं के नाम सामने आते हैं...तो वो हैं....
अटलबिहारी वाजपेई
लालकृष्ण आडवाणी
नरेन्द्र मोदी
मायावती
अमर सिंह
मुलायम सिंह
लालू यादव
राबड़ी देवी
वसुन्धरा राजे
शरद यादव
रामविलास पासवान
शिबू सोरेन
शिवराज पाटिल
डीपी यादव
मुख्तार अंसारी
अतीक अंसारी
बबलू श्रीवास्तव
राजा भईया

इनमें से कौन सा नाम ऐसा है...जिसे हम फक्र से सर उठाकर कह सकते हैं कि हां ये हमारा नेता है....और कई नाम तो ऐसे हैं...जैसे राष्ट्रीय मौहब्बत का ताज़ा-ताज़ा तकाज़ा करते.....चांद मौहम्मद....या फिर पार्लियामेंट मे पहुंचने वाली वो हस्तियां...जिनकी जायदाद और दौलत के आंकड़े....अगर पत्रिकाओं औऱ अखबारों में छपते हैं...तो मैं तो सिर्फ उनके पीछे लगे ज़ीरो ही गिनती रह जाती हूं......

हालांकि सर्वगुणसम्पन्न नेता तो कोई भी नहीं हो सकता....लेकिन फिर भी जिस देश में 77 प्रतिशत लोगों की आमदनी 20 रुपए से नीचे आती हो और जहां तीस करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे ज़िदगी गुज़ारने को अभिशप्त हों वहां क्या ऐसा नहीं लगता....कि पॉलिटिक्स...बेस्ट बिज़नेस ऑप्शन बनकर सामने आ रही है.....हर कोई इस बहती गंगा में अपने हाथ धोकर ज्यादा से ज्यादा माल बटोरना चाहता है.....विरासत में मिली जायदाद और धनराशि को अगर अलग कर भी दिया जाए....तब भी कोई नेता ऐसा नहीं होगा जिसने काली कमाई ना की हो......

चाहें वो राष्ट्रीय दल के नेता हों या फिर दिनों दिन ताकतवर होते जा रहे ...क्षेत्रीय नेता..काम क्या किया किसी ने भी अब तक.....एक कुर्सी को त्यागकर त्याग और सच्चाई की प्रतिमूर्ति बनने का दावा करता है....तो एक को जिंदगी भर देखा गया...प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पूरा करना है.....कोई है जो वाइब्रेंट गुजरात की हुंकार भरता है....तो किसी के ऊपर रंगीले राजस्थान की हार का ठीकरा फूटता है....राजनीति ने तो सन्यासियों का सन्यास भी हिला दिया.....यहां कुर्सी का मोह इतना कि सन्यासी होने की प्रतिष्ठा भी मिट्टी में मिल जाए तो गम नहीं......

खादी लहर औऱ राम लहर की बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग क्या बता सकते हैं....लहर क्या होती है.....क्या मैं इसे एक तरह का नशा नहीं मानू जिसकी गिरफ्त में ये लोगो को फांसकर कुर्सी पाते हैं.....शराब की दुकाने....चरस, गांजा, अफीम के लिए लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है....लेकिन कोई सत्ता के नशे की बात नहीं करता जिसके नशे में चूर ये नेता.....हम सब को बर्बाद करते जा रहे हैं.... मगर क्यों और कैसे.....लाख टके का सवाल सिर्फ और सिर्फ यही है कि क्यों सो रहे हैं हम सब.....हम क्यों चुनते हैं ऐसे लोगों को अपना नेता जो सिर्फ एक ही परिपाटी पर चलकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं....लेकिन दावा करते हैं जनता के हितों का और उनकी भलाई का....

3 comments:

P.N. Subramanian said...

हमारे पास केवल एक ही विकल्प है. सभी प्रत्याशियों को नकारते हुए वोट नहीं देने का वोट (धरा ४९ या ऐसा ही कुछ)

वर्षा said...

सुब्रमण्यम जी से सहमत नहीं हूं मैं। आजकल ये नारा बुलंद है कि पढ़े-लिखे युवाओं को राजनीति में आना चाहिए। मैं भी यही सोचती हूं। राहुलगांधी, उमर अब्दुला, सचिन पायलट...ऐसा नहीं कि सभी दूध के धुले हों लेकिन इनसे कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। वोट भी इसी आधार पर देना चाहिए।

अनिल कुमार वर्मा said...

तनु जी,कोसने से अच्छा है मिलकर एक ऐसी सरकार चुनी जाए जो देश के लिए, समाज के लिए कुछ सार्थक कर सके। यूं तो नेता जात कुत्ते की दुम की तरह होती है, कभी ना सीधी होने वाली लेकिन अगर हम उसे सीधा ना कर पाएं तो ना सही काट तो सकते ही हैं। तो इस बार कोशिश कर ली जाए।