मुस्कुरा....
तू जहां भी हैं....
सिर्फ मुस्कुरा...
क्योंकि
तेरी मुस्कुराहट...
मेरे बदन में....
तेरी आहट बन उतरती है....
तेरी मुस्कुराहट...
धूप की तरह....
मुझपर बिखरती है....
तेरी मुस्कुराहट...
हर रोज़,
मुझे छूकर गुज़रती है...
औऱ
किसी रुपहली बारिश की तरह
मुझ पर बरसती है......
तेरी ये मुस्कुराहट....
मुझे भीतर तक छूकर जाती है....
जब भी तेरे होठों पर आती है....
तू मुस्कुरा....
5 comments:
usko khush dekh kar sukoon milta hai .........aisa hi hota hai
बेहतरीन!!!
sunder mithe muskurate bhav waah
सुन्दर ! किन्तु हरदम मुस्कराना तो मुस्कान का अवमूल्यन कर देगा व मुस्कराना भी एक काम हो जाएगा।
घुघूती बासूती
मेरी कल्पना में
तू कितना मुस्काती है
कहीं थक तो नहीं जाती है !!!
Post a Comment