Friday, February 13, 2009

तुम्हारी तस्वीरें.....

तुम्हारी तस्वीर.....हर सुबह की शुरुआत एक गर्माहट के साथ कराती....हर रात को एक खुशमिज़ाज अंदाज़ से समेटती ....तुम्हें नहीं पता.....तस्वीरों में तुम मुस्कुराते....मुझे देखते हो....नाराज़ नहीं होते........और हां कभी-कभी.....ना......कभी भी नहीं.......बस बात नही करते.....लेकिन तुम्हारी तस्वीर बोलती है.....जब मेरे अंदर उतरती है.....खो जाती है......मेरे साथ.....तुम्हारे संग गुज़ारे हर लम्हें को जीने के लिए.........बहुत ज़ब्त....करती हूं......जब जी नहीं पाती........वो सारे लम्हें.......दोबारा तुम्हारे साथ.....हरपल तुम्हारे साथ........मेरे अंदर.....मेरे साथ....मेरे दिल-दिमाग....मेरे ज़हन.....मेरे ख्याल.... कहीं भी कोई जगह नहीं....जहां तुम नहीं होते.....एक तस्वीर मेरे मोबाइल के चेहरे पर......तुम्हारा एक ख्याल....मेरे चेहरे पर.......बाकी सब अंदर......मेरे अंदर..........लगता है....... जैसे मैं दो हूं......एक तुम-एक मैं..........कभी तुम ज्यादा तो कभी मैं.........कोई रेस नहीं.....कोई बंटवारा नहीं........सबकुछ सहज़.....अपने आप..........कभी पता नहीं चलता..........तो कभी खो जाती हूं.........लेकिन तुम्हारे अंदर ही तो समाती हूं........कभी भी दूर नहीं.....हमेशा पास......उस ख्याल की तरह .....जो हमारी ज़िंदगी पर छाया.....बिन बताए.....अनकहा...अंजाना....अनचाहा
पता नहीं तुम्हें मालूम या नहीं......एक दरवाज़ा है तुम्हारी तस्वीरों में.......जहां से रोज़ मैं पहुंचती हूं.....तुम्हारे भीतर......तुम्हें बिन-बताए......पता नहीं रात में......कुछ भटकता है तुम्हारे सीने में....या नहीं.....बस डर लगता है.........तुम जाग ना जाओ.......मैं बताना नहीं चाहती कि मैं रोज़ जाती हूं.....उसी तस्वीर से तुम्हारे अंदर........दोबारा खोना नहीं चाहती.....रात में भी नहीं.....ख्यालों मे भी नहीं.........तुम जागना मत रात में......वर्ना दोबारा छीन लोगे मुझसे....थोड़ा सा मैं और थोड़ा सा तुम.....एक बार फिर भटकने के लिए छोड़ दोगे......उसी अंधेरे में जो दिन में भी फैलता और रात में भी नहीं सिमटता......बस छाता हमेशा के लिए मेरे ऊपर मेरी ज़िंदगी पर...

5 comments:

mehek said...

khusurat bhav dil se waah

रंजू भाटिया said...

बहुत भावपूर्ण लिखती है आप .तस्वीर ही बोलने लगी जैसे

शोभा said...

अद्भुत। बहुत सुन्दर।

P.N. Subramanian said...

"एक दरवाज़ा है तुम्हारी तस्वीरों में.......जहां से रोज़ मैं पहुंचती हूं.....तुम्हारे भीतर..."
दाद तो देनी पड़ेगी. कैसे कैसे सोच लेती हैं. सुंदर. आभार

वर्षा said...

पर भटकना मत, दरवाजे से आती-जाती रहना