वो शक्ल नहीं दिखती मुझे......एक धुंधली सी तस्वीर है...... ,जो डूबती है, उतरती है...मेरी यादों के समंदर से, क्योंकि शायद.... तुम वही हो जिसको मैं अक्सर तलाशा करती हूं....तुम्हीं ने उंगली पकड़कर सिखाया था चलना ,शायद कांधे पर बिठाकर मुझे मनाया भी था....,लेकिन मुझे ये कभी नहीं बतायाकि इक दिन चला जाऊंगा मैं, तब नहीं थामेगा कोई तुम्हारी उंगली ,ना ही कोई मनाएगा और बताएगा वो सब जो मैं तुम्हें बताना,सिखाना चाहता हूं...।
जाने क्यों याद आतीं है ..वो सारी खोई-खोई सी भूलीं सी तस्वीरें...एक कुहासा सा क्यों नहीं छाता मेरी यादों के पर्दे पर ...जहां खो जाऊं मैं...खुद ही....और न देख पाऊं ...ना जान पाऊं और ना समझ पाऊं ....उन तस्वीरों को और उन धुंधलाते चेहरों को......।।पर ऐसा कभी नहीं होता...एक जर्द सा एहसास है...मेरे ज़हन पर...मेरी यादों में....थोड़ा सा कड़वा और थोड़ा सख्त.........जो कभी कचोटता है मुझे और कभी तोड़ता भी है......
मन करता है तुम सामने आओ और तुमसे चीख चीख कर पूंछू...कि क्यों लाए मुझे यहां....जब नहीं संभाल सकते थे मुझे ....छोड़ दिया इस दरिया में .....जहां कोई मोल नहीं ...ना मेरा ना तुम्हारा और ना मेरे इन जज्बातों का....जिनके लिए मैं आज भी तरसती हूं.....लेकिन तुम तो क्या तुम्हारी परछाईं भी नहीं पकड़ सकती......सिर्फ तलाश कर सकती हूं ...उम्र भर
अट्ठाईस बरस गुज़र गए.....तुम्हारे अक्स को तलाश करते-करते...मैं थक गई ...लेकिन तुम नहीं मिले...।लेकिन पता नही क्यों .......कभी कभी ऐसा भी लगता है.........जैसे कि तुमने मुझे देखा....कुछ कहा...पर शायद मैं ही सुन नही पाई....
बड़ा अच्छा लगता है ये झूठा एहसास.....
क्योंकि ये मेरी दुनिया है........
जहां मैं रहती हूं..........
लोग कहते हैं......
खोई-खोई रहती हूं....
लेकिन कभी-कभी...
तुम वहां आते हो....
मुझे दुलारते हो........और बताते हो, वोही सब,जो मैं सुनना चाहती हूं....और जो कुछ तुम मुझे सुनाना चाहते हो....।
10 comments:
गहरी अभिव्यक्ति
बस इन शब्दों को पकड़ना चाहता हूँ....
भावपूर्ण अच्छी सोच गहरी अभिव्यक्ति . बहुत बढ़िया पोस्ट.
bahut khub!
लोग कहते हैं......
खोई-खोई रहती हूं....
लेकिन कभी-कभी...
तुम वहां आते हो
bahut sundar kahi hamare dil ki baat hi likh di aapne.
अति संवेदन शील रचना....
नीरज
jahan-e-tasavvur ka lutf hu-ba-hu bayan kiya hai aap ne...
रचना अच्छी है... लेकिन सिर्फ रचना है तो कोई बात नहीं...आप यदि इस रचना के अंदर हैं.. तो कृप्या बाहर आइए और यथार्थ के साथ कदम मिलाइए.. यहां सबकुछ बुरा नहीं है...
आप सभी का शुक्रिया इसे पसंद करने का...अनुराग जी आपने लिखा ...शब्दों को पकड़ना चाहते हैं लेकिन मुझे लगता है कि ये सिर्फ शब्द ही तो हैं जो हमारी गिरफ्त में रहते हैं और कभी-कभी बस यूंही बाहर आजाते हैं...पता ही नहीं चलता....ये हमारे अंदर को रिप्रेजेंट करते हैं...जो कुछ मैनें लिखा...वो शायद क्षणिक आवेग,आंसू,वेदना और पता नहीं क्या-क्या...सबका मिला-जुला स्वरुप था...जो बस बाहर आगया...
और अग्निदीप जी आपने लिखा कि अगर ये सिर्फ एक पोस्ट है तो ठीक है वर्ना मैं..बाहर आजाउं....
मैं आपसे सिर्फ यही कहना चाहती हूं कि मेरी कोई भी पोस्ट सिर्फ पोस्ट नहीं होती है...वो मेरा रिफलेक्शन होती है..मेरी सोच होती है...वो मैं होती हूं...और आप बाहर की दुनिया की बात कर रहे हैं....मेरी दुनिया बहुत खूबसूरत और सूकुनभरी है...कमसेकम इस दुनिया के मुकाबले....औऱ रही बात यथार्थ की तो उसके धरातल पर तो मैं अपने जन्म के बाद से ही खड़ी हूं
बारहाल धन्यवाद आपका भी .....
Dear Friend,
I wish ki zindagi tumhein hamesha tumhari wishes ke according hi mile aur tum us mukaam tak zaroor pahuncho jahan tak sirf tum hi jaa sakti ho kyonki har insaan ke liye ek masksad tay kiya hai khuda ne aur tumhari zindagi ka maksad zaroor poora hoga I have faith in Your abilities.
Kabhi zindagi harane lage to humesha yaad karna ki tumhare apne tumhare saath hain hamesha.
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