बूंद-बूंद,
और इक बूंद
और इसी तरह
बूंद-बूंद करके
मेरे सब्र का प्याला
भरता जा रहा है......।
बहुत कोशिश करती हूं,
अपने आप को रोकने की,
समेटने की,सहेझने की
लेकिन
सफल नहीं हो पाती
नहीं ला पाती
अपने अंदर
वो वसुधा सा धैर्य
जो बांध पाए मुझे
मेरे छलकने से
और
दे पाए मुझे वो गहराई
जिसमें समा जाए
मेरे साथ-साथ इस
जहान की बुराई..........।।।।
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