Monday, August 18, 2008

देशभक्ति / बाज़ार

अभी-अभी पंद्रह अगस्त बीता और उसी एक दिन के साथ खत्म होती नज़र आई देशभक्ति भी। इसके पहले जो गली मुहल्ले तिरंगे के रंग में डूबे नज़र आ रहे थे अचानक एकदम फीके नज़र आने लगे। स्कूलों में हफ्ता, पंद्रह दिन पहले जो रंगारंग कार्यक्रम पेश करने के लिए रिहर्सल्स की कवायद चल रही थी (जो बच्चों के लिए महज़ क्लास-बंक करने का एक बहाना होती थी)...वो भी खत्म हो चली। और हां इसी बीच सारे होर्डिंग्स,बैनर,अखबार और खासतौर पर डिज़ायन किए गए एडवर्टीज़मेंट भी अलग से अपनी जगह बनाते नजर आ रहे थे...वो भी वापस अपने ट्रैक पर आ गए....सब कुछ बदल सा जाता है समय के साथ॥ कल तक -स्वतंत्रता दिवस- का समय था,,,मार्केट उसी के अनुरुप था,अब वो खत्म तो बाकी चीज़ें भी खत्म........लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं कि ये सब हमेशा के लिए खत्म.....नहीं-नहीं ये सब तो फिर से लौटने के लिए गया है...जीहां...सब कुछ बिल्कुल नई पैंकिग में हमे फिर मिलेगा....गणतंत्र दिवस पर,बस थोड़ा सा इंतज़ार और वापस हम एक दिन के लिए देश भक्त हो जाएंगे।
लेकिन इस दौरान हम सभी को सब कुछ अच्छा लगता है और लगे भी क्यों ना,सबकुछ ही तो पॉजिटिव दिखाया जाता है,आखिर देशभक्ति की बात है, हमारे भारत की बात है।
ये वही भारत है जिसके लिए नारा दिया जाता है......... इंडिया शाइनिंग। या दूसरे शब्दों में कहें भारत बदल रहा है,बढ़ रहा है।कहते हैं बदलने की और बढ़ने की प्रक्रिया अनवरत होती है....रुकती नहीं सिर्फ बढ़ती है,बदलती है और निरन्तर चलती रहती है।सब कुछ बहुत सुखद है क्योंकि सब कुछ बहुत सुंदर नजर आ रहा है....हालांकि इस सुन्दरता के पीछे दिखता तो बहुत कुछ है लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है....या यूं कहें कि कोई देखना ही नहीं चाहता ।
पंद्रह अगस्त को जब सुबह अपना टेलिविज़न ऑन किया तो पाया कि सारे ही चैनल्स देशभक्ति के रंग में डूबे हुए हैं...सबसे बड़ी खबर देशभक्ति की बनी हुई थी क्योंकि वोही उस वक्त की मांग थी और सिर्फ वोही बिकाऊ थी।
देश का बच्चा बच्चा उस वक्त सिर्फ और सिर्फ वोही नजारा देखना चाह रहा था,और जो नहीं भी चाह रहा होगा उसे चाहना पड़ेगा क्योंकि यही उस वक्त की डिमांड थी।
सभी कहते नज़र आ रहे हैं कि कितना अच्छा लग रहा है..अच्छा तो है.......लेकिन अफसोस किस बात का......?????
हां ...अफसोस होता है,अफसोस इस बात का होता है कि सब कुछ बिकाऊ क्यों हो गया ,तरक्की के मायने क्यूं बदल गए.....सबकुछ एकसमान क्यूं नहीं है।
जब तक स्वतंत्रता दिवस का खुमार उतरेगा....तब शायद कुछ चैनल्स को ये भी याद आए कि अरे..समाज का एक तबका ऐसा भी तो है ..जिसके लिए स्वतंत्रता दिवस या गांधी जयंती के कोई मायने ही नहीं होते...उन्हें सिर्फ एक शब्द का अहसास है और वो है......भूख...।जिसके लिए उन्हें फिर सुबह उठना है और दो जून की रोटी का इंतज़ाम करना है.......ये वही तबका है जिसे न्यूज़ चैनल्स वाले गाहे-बगाहे दिखाकर या ये कहना बेहतर होगा कि होली,दीवाली या फिर ऐसे ही कुछ विशिष्ट मौकों पर दिखाकर शायद जनता की हमदर्दी बटोरते हैं....प्रैक्टिकली कौन कितना करता है,ये तो हम सभी जानतें हैं।
लेकिन यहां लाख टके का सवाल सिर्फ इतना ही है कि तरक्की के मायने क्या हैं और इंडिया शाइनिंग के पीछे किस चेहरे की चमक है..इन भोले, मासूम,भूखे चेहरों की या फिर पेज थ्री सोशेलाइट्स की ??

1 comment:

Devesh Gupta said...

समझ नहीं पा रहा हूं कि आप नाराज़ किस बात से हैं ... 15 अगस्त के समारोह आपको अच्छे नहीं लगे ... या चैनल्स को ये समारोह दिखाने नहीं चाहिये थे... या आपको लगता है कि ये समारोह एक ही दिन क्यों ..... और ये तो सही है कि भारत बदल भी रहा है और बढ़ भी रहा है, इसमें आपको शक कैसा ? बाज़ार की अपनी जगह है और चैनल्स की अपनी मज़बूरी ... लेकिन इससे देशभक्ति कहीं कम नहीं होती ... ये एक जज़्बा है जो भूखे पेट भी ज़िन्दा रहता है ... लोगों की जीवन शैली तेज़ी से बदल रही है ... महंगाई जब 16 सालों का रिकार्ड तोड़ रही है तो भी लोगों के खर्च करने की रफ्तार में कोई ख़ास कमी नहीं आई है .... भारत पिछले 4 सालों से 9 फीसदी की गति से विकास कर रहा है जो आज़ादी के पिछले 61 सालों में कभी नहीं हुआ .... फिर इसमें शक कैसा कि भारत बढ़ रहा है ...भारत बदल रहा है .. India is Shining