नदी का सपना...
नदी को पाना
अब जैसे कुछ भी करना...
बस नदी हो जाना .....
नीम बेहोशी खुशियां...
जागते सोते गलतफहमिया....
एक अंजुरि नदी मेरे भीतर ......
हर पल कुछ कहती है,,,
सुबह अब हर रोज़ होती है....
हर पीछे छूटी रात की तरह...
और नदी भी आवेग देती है...
मेरे भीतर बहते प्रवाह की तरह.....
नदी को पाकर.....क्या ........
तलाश खत्म....फिक्र खत्म....
जैसे जिंदगी भी खत्म
किसी की जिद नही ....
कोई कसमसाहट नहीं...
बस एक खिलखिलाहट ..
कल...कल
मेरे भीतर....!!
7 comments:
Nadi ki is kalkal ko jeevit rakhna. Hoga ... Jeevan ke liye ... Sundar rachna ...
बहने दो...जिंदा रहने की आवश्यक शर्त है ....
नदी का नाद जीवन का अंतर्नाद है।
उसकी खिलखिलाहट सागर पर आकर ही शांत होती है। लेकिन उससे पहले उसे मिलना होता है, पत्थरों से, चट्टानों से, कभी रेतीले तो कभी उर्वर मैदानों से...
नदी का आवेग ही उसका संवेग है। सुंदर रचना।
सुंदर रचना। नदी का नाद ही उसका अंतर्नाद है।
shukriya :)
कितनी खूबसूरत, जीवंत और गुनगुनाती है ये नदी...
यह नदी आपके शब्दों में भी कल-कल करती रहती है।
Post a Comment