ये सारी कवायद एक ऐसे इंसान के लिए....जिसे सिनेमा पर लिखने के लिए 1988 में पहली बार नेशनल अवॉर्ड से नवाज़ा गया और जिसे नेशनल एवॉर्ड पाने पर पहला फिल्म क्रिटिक-राइटर बनने का गौरव हासिल हुआ......ब्रजेश्वर मदान.......
जी हां......वही ब्रजेश्वर मदान, जो अब फिल्मी दुनिया तो लगभग छोड़ चुके हैं लेकिन उनकी कविताएं उनकी ज़िंदगी का हिस्सा ही नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी बन चुकीं हैं........और जो सम्मान मदान साहब ने मुझे दिया है.....वो तो मैं उम्रभर नहीं भूल सकती.....
क्या कोई बता सकता है कि...जब कोई अपनी भावनाओं को किसी के लिए....डेडीकेट करता है तो कैसा महसूस होता है....
मेरे साथ ये पहली बार हुआ.........जब मैंने अपने ही बराबर...............नहीं, बल्कि अपने से कई गुना ज्यादा एक संवेदनशील व्यक्ति को महसूस किया............मदान सर ने अपनी नई किताब(काव्यसंग्रह)अल्मारी में रख दिया है घर........जब मुझे भिजवाई थी..........तब ये तो मुझे थोड़ा बहुत अंदाज़ा था कि इस काव्य संग्रह का कुछ हिस्सा मेरे लिए ज़रुर है.........लेकिन ये मेरे लिए बिल्कुल अप्रत्याशित था कि ये काव्य-संग्रह मेरे लिए डेडीकेटेड है.......
अल्मारी में रख दिया है घर.....जब खोलकर देखा तो पाया उसमें पहले पन्ने पर लिखा है मेरा नाम....और उसके बाद दूसरे पन्ने पर लिखा है.......समर्पण.......तनु शर्मा और मनीषा.......आधी दुनिया के दो पूरे चेहरों को......मैं कुछ वक्त तक तो सिर्फ देखती ही रह गई थी.....और उसके बाद खुशी के साथ साथ गर्व औऱ ना जाने कौन कौन सी मिश्रित सी प्रतिक्रियाएं मेरे अंदर महसूस करती गई.......
उन्हें मैने देखा तो कई बार था लेकिन कभी जाना नहीं था.....क्योंकि शायद मैं हमेशा अपनी ही दुनिया में ज्यादा रहती हूं और आसपास को भूल जाती हूं..... उनके साथ बहुत ज्यादा वक्त नहीं गुज़ारा है......सिर्फ ऑफिस जाने पर लंच टाईम में मिल जाना या कभी चाय पर......बस थोड़ा बहुत बात करते करते जाना कि जो शख्सियत मेरे सामने बैठी है....वो कौन है.....सिनेमा मेरा पसंदीदा विषय है......शायद मैंने अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव को सिनेमा के लिए ही रिज़र्व कर रखा है.....शुरुआत में तो शायद यही एक वजह थी.....उनके साथ बैठकर उन्हें जानूं और उनके संस्मरणों को भी जान पाऊं......लेकिन जैसे-जैसे उनको जाना तो पाया कि हर इंसान में मौजूद.....जिंदगी को चलाने वाला दिल....उनमें कुछ ज्यादा ही उमगता है.......ये वो आम दिल नहीं है...जो सिर्फ धड़कने का काम करता है......
ये वो दिल है.....जिसमें अपनी पत्नी के जाने का ग़म छुपा हुआ है.....जिसमें भावनाएं छुपीं हैं....जिसमें दर्द है तो जीने का हौसला भी कूट-कूट कर भरा है.....इसमें प्यार है साथ ही ख्वाहिशें भी उमगती हैं....ये दिल आज भी धड़कता है.......आज भी किसी से प्यार कर सकता है.....और आज भी किसी की आरज़ू कर सकता है.....इसमें पूरे संसार को समा लेने की गुंजाइश भी नज़र आती है और जो आज भी किसी और के टूटे दिल को मरहम लगा सकता है.....इसमें वो सबकुछ है जो हम शब्दों में नहीं बयां कर सकतें है....ये सारी बातें सिर्फ समझी जा सकतीं है..........
उनको जानने के बाद सिर्फ ये एहसास हुआ कि कोई इंसान इतना संवेदनशील कैसे हो सकता है....कोई इतना भावुक कैसे हो सकता है.....क्योंकि तब तक मैनें सिर्फ अपने आप को जाना था कि मैं इतनी भावुक क्यों हूं.......लेकिन उन्हें जानने के बाद तो महसूस हूआ कि शायद वो भावुकता के चरम पर बने हुए इंसान हैं उनके अंदर खून नहीं....जज्बात बहते हैं......
मदान सर ने अपनी सारी ज़िंदगी मुम्बई में बिताई.....उस मायावी दुनिया में जिसकी चमक हर किसी को खींचती है....और जो कई बार लोगों के लिए ब्लैक होल भी बन जाती है और जहां लोगो की सारी उम्र लग जाती है अपनी स्लो लाइफ को फास्ट ट्रैक पर लाते लाते.......उसी मायावी दुनिया की बदौलत......उनकी कलम को राष्ट्रीय पुरुस्कार से नवाज़ा गया.....और वो बने पहले फिल्म समीक्षक और लेखक....
यूं तो ये उनका बहुत ही औपचारिक तौर पर दिया गया परिचय है.....उनको तो सिर्फ उनकी रचनाओं के ज़रिए ही जाना जा सकता है कि वो क्या है.....उनकी एक-एक रचना....ये सोचने पर मजबूर कर देती है..कि ये इंसान है या जज़्बातों का समंदर......जिसके आगोश में हम बस बिखरते चले जा रहें हैं......
उनकी बेहतरीन रचनाओं में है.....लेटर बॉक्स (जिसे हिंदी एकेडमी से पुरुस्कृत किया जा चुका है), सूली पर सूर्यास्त......,बावजूद.....और अब.....अल्मारी में रख दिया है घर (काव्य-संग्रह).......इसके अलावा भी हम अखबारों में, कादम्बिनी, तदभव, कथादेश और दूसरी साहित्यिक किताबों में उन्हें पढ़ पातें हैं......
एक ऐसा इंसान जो एक आम ज़िंदगी जीते हुए भी कितना खास है.....जिसने एक आम आदमी की ज़िंदगी को......कितनी जीवंतता के साथ चित्रित किया है...कई बार हममें से कितने ही लोग हैं जो बस जन्म लेतें हैं.....एक जीवन बस जीते हैं और यूंही इस दुनिया से चले जातें हैं...और कुछ तो शायद उसे भी नहीं जी पाते.......
लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जो अपने जीने के साथ-साथ दूसरों की ज़िंदगी भी जी रहा है....उसे समझ भी रहा है.....और दूसरों को समझाने की कोशिश भी कर रहा है.......कुछ पता ही नहीं कितनी ज़िंदगी जिए जा रहा है.......और कितनी जिजीविषा भरी है उसके अंदर.....
हां,शायद कुछ ऐसे ही हैं....मदान सर
पता नहीं...उन्हें मुझमें क्या नज़र आता है.....कभी मैं एक बरगद का पेड़ नज़र आती हूं तो कभी अरुंधती रॉय से भी बड़ा बनने वाला एक नाम.....मेरे ब्लॉग का नाम वो फ्रांस की लेखिका के नाम पर बदलना चाहते हैं क्योंकि वो मुझे ऊंचाईयों पर देखना चाहते हैं......वो मुझे उदास देखकर उदास भी होते हैं.....और मेरी आंखों की चमक देखकर खुश भी.....मेरे साथ खाना खाने में भी उन्हें कविता नज़र आती है तो मेरी थाली की हरीमिर्च में दुनिया की सारी हरियाली सिमट जाती है.....
जितने दिन मैं सहारा में रही....अलग-अलग तरीके के लोगों को जाना लेकिन उनमें 99पर्सेंट ग़रीब थे....मानसिक तौर पर,जिनके लिए मैं दुआ करती हूं कि वो जहां हैं वहीं रहें और वैसे ही ग़रीब रहें.....जो रिश्तों को समझ नही पाते,एक स्वस्थय ज़िंदगी जी नहीं पाते और जो ना तो खुद अपनी ज़िंदगी बिता पाते हैं और ना दूसरो को जीते देख खुश हो पाते हैं...........
...............................मैं और मेरी एक दोस्त(जो अब नही है)उनके पास बैठते थे.....और उन्हें जानने की कोशिश किया करते थे......उन्होने मेरी काफी हौसलाफजाईं की थी.....लिखो और अच्छा लिखो....औऱ बस उसके बाद से लिखने का साथ तो शुरु हो गया लेकिन सहारा छोड़ने के बाद उनका साथ छूट गया .......मैनें उनसे कहा था कि एक किताब लिखूंगी उनपर....जो मैंने नहीं निभाया.....लेकिन मैं पूरी कोशिश करुंगी कि लिखूं ज़रुर क्योकि उससे मेरा सम्मान बढ़ेगा.....क्योंकि वो तो वहां है ही जहां बाकी किसी सम्मान की ज़रुरत रह नहीं जाती.....
यहां मैं उनकी कविताएं नहीं लिख रही हूं.......लेकिन आने वाले टाइम में एक-एक करके ज़रूर उनकी हर रचना सबतक पहुंचाने की कोशिश ज़रुर करुंगी.....क्योंकि मदान सर को सिर्फ उनकी रचनाओं के ज़रिए ही समझा जा सकता है........
शुक्रिया मदान साहब आपका....