Thursday, July 24, 2014

लड़कियां..


वो, जो गायब हो जाती हैं किसी धुंए की तरह..
वो, जो दफन हो जाती हैं इच्छाओं की तरह..
वो, जो जी ही नहीं पाती गुलामों की तरह..
वो, जो ज़िंदगी बनाती संवारती हैं ईश्वर की तरह..
वो, जिनकी उम्रें गुज़रती हैं किसी के मान सम्मान,घर की इज्जत की तरह....
हां वोही, जिनकी रुहें बदल दी जाती हैं किसी मौसम की तरह......
वो कौन हैं, कैसी होती हैं, कहां से आती हैं, कहां चली जाती हैं
अलमस्त, खुशमिज़ाज अल्हड़ लड़कियां....
क्या वो याद आती हैं, क्या वो जगह बनाती हैं...
धरती, अंबर, धूप, छांव, बारिश, बादल, तितली...
एक बार सबसे पूछो...

किसी सावन के बरसने से क्या धुल जाती हैं वो परछाइयां...

अफसोस..
क्यों हर बार मौन हो जाते हैं वो चेहरे...
जिनकी सरपरस्ती में कुर्बान हो जाती हैं वो मासूम जिंदगियां।

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

गहरी ... दिल को छूती हुयी पंक्तियाँ ...
सभी को मिल कर समाज को बदलना होगा इन मासूम मुस्कानों के लिए ...