आज मिस करने का दिन था या नहीं पर.....आज बहुत मिस किया....तुम्हें....
मुझे तो ये भी नही मालूम कि तुम होते तो क्या होता.....मैं तुम्हें 'तुम' कहती होती या फिर 'आप' से संबोधित करती.....एक लंबा अर्सा गुज़रा है तुम्हारे बिना......लाइफ में मैं इतनी ज्यादा कंफ्यूज़ हूं कि ये भी नहीं मालूम कि तुम्हें 'मिस' करती हूं या नही.....तुम्हें देखा नहीं...जाना नहीं.....वक्त के बढ़ने के साथ साथ अब तो तुम्हारा चेहरा भी याद नहीं....सिर्फ याद है एक लंबी 'परछायी'....सब कहते हैं....यू वर गुड लुकिंग........डार्क,टॉल एंड हैंडसम.....इसलिए मुझे भी अब वही परछायी नजर आती है....
बहुत गुस्सा था तुम्हारे ऊपर.....इसलिए कभी जान कर याद भी नही किया पर अब शायद धुंधलाती यादों के साथ वो गुस्सा भी अपनी गर्मी खोता जा रहा है........मां को देखते-देखते.......वो सारा गुस्सा बढ़ता जाता था और अब उन्हें ही देखते देखते काफूर भी हो जाता है......मुझे मालूम है उम्र के इस पढ़ाव पर मां सबसे ज्यादा तुम्हें मिस करती हैं........पर कभी कहती नहीं......मां को तुम्हें इतना मिस करते कभी नही देखा जितना वो आज करती है....शायद ये उम्र के आंकड़ों का फर्क होता है.......पर कई बार अनकही बातें ज्यादा शिद्दत के साथ समझ आती हैं....
कुछ चीजें उम्र के साथ साथ फासलो के दायरे में तब्दील होती जाती हैं......और दूर बहुत दूर....फिर शायद नज़र आना बंद हो जाती हैं.... मां....मां के साथ साथ जिंदगी के कई रंग देखे हैं.....उन रंगो में बदलाव भी देखे हैं......उनकी कोशिश में कहीं कोई कमी नहीं थी पर फिर भी.......जिंदगी की शुरुवात बहुत काली थी........अंधेरा तो अब भी नहीं छंटा पर अब कुछ रंग भी नज़र आते हैं....कश्मकश,मेहनत और संघर्ष....इतना ज्यादा जिंदगी के साथ साथ घुल मिल गया कि नॉर्मल लाइफ क्या होती है .........
सच में समझ नही पाए....
शायद आज भी याद नहीं आते 'तुम' अगर 'फादर्स डे' नही होता.....क्योंकि सुबह तो हर रोज़ की ही तरह थी.....कुछ नया नहीं था....तुम्हारी कमी भी नही थी......पर ऑफिस आते ही सबकुछ बदल गया.....फादर्स डे पर स्पेशल प्रोग्राम बना जिसे मुझे करना था....बस शायद यहीं कुछ भीतर का बाहर आ गया......और फिर तुम याद आए......क्योंकि एक ही दिन में एकसाथ फादर को याद करने की फ्रीक्वेन्सी उस दिन पर हावी हो गयी......हालांकि इससे पहले भी कई बार ये फादर्स डे आया और गया होगा.......पर शायद उस दिन ये मुझ पर हावी नहीं हो पाया होगा.....क्योंकि हम लोगो की ज़िंदगियों में इस तरीके के दिन बहुत मायने नहीं रखते....जब एक खास दिन....रिश्तों को ज्यादा तवज्जोह दी जाए....हमारे जैसे घरों में रिश्तो में या तो गर्माहट होती है या फिर कहीं गहरे बैठी नमी.....बीच का कुछ नज़र नहीं आया....कोई बनावटीपन नहीं..........इसलिए कुछ ज्यादा सोचना भी नहीं पड़ता......
जिंदगी तुम्हारे बिना जीने की इतनी आदत पड़ चुकी थी कि किसी लम्हें तुम या तुम्हारी कमी कभी महसूस नहीं हुई......उस दौरान भी नहीं जब ज़िंदगी के अहम फैसले लेने का वक्त होता है......
तुम्हारे बिना ज़िंदगी......बस चल रही थी....
और हां आज बहुत शिद्दत से सोचा, पहली बार....कि तुम होते तो क्या होता....
जिंदगी कैसी होती ....
यकीनन अलग होती....
अच्छी या बुरी......ये सोचने की ज़रुरत नहीं.....
मैं तुम्हें क्या कहती....पापा...डैडी...पा या फिर कुछ और.....नहीं मालूम....
तुम मेरा हाथ पकड़ कर दुनिया की राह समझाते.......शायद
मेरी हर जिद्द पूरी करने की कोशिश करते .....शायद
जिंदगी का ककहरा तफ्सील से जान पाती....शायद.....
और पता नहीं क्या क्या होता......क्या क्या नही होता......
पर मेरे पीछे तुम खड़े नज़र आते,मेरी बैकबोन की तरह.......शायद
मैं सुरक्षित भी महसूस कर पाती होती...शायद
और हां शायद ज़िंदगी में इतनी कड़वाहट....इतना आक्रोश भी ना होता.....
तुम नही जानते और शायद कभी जान भी ना पाओ कि एक तुम्हारे सिर्फ एक तुम्हारे चले जाने से तीन ज़िंदगिया बदल गयीं हमेशा के लिए......
एक खूबसूरत जवान औरत विधवा हो गयी......जो जिंदगी के हर गुज़रते क्षण के साथ बूढी होती गयी......(और वोही पल-पल किसी को बर्बाद होते देखना ....आपकी अपनी सांसो की ख्वाहिशें भी कम कर जाता है) जिसकी अपनी जिंदगी खत्म हो गयी और जिसके अरमान शायद आंख खोलने से पहले ही मुंद गए.....जिसके सुनहरे जीवन की शुरुवात होने से पहले ही वहां से रंग समेट दिए गए.....जिसकी खूबसूरत गोरी कलाइयां सूनी कर दी गयीं और जिसके माथे से सिंदूर हटाते वक्त चारों तरफ से ये समझाया गया कि तुम्हारी किस्मत में यही लिखा था......उसके बाद फिर जिसने शायद जिंदगी में सूरज की लालिमा भी महसूस ना की हो....और इन सबके साथ उसे पैकेज में मिली एक अभिशप्त सी जिंदगी....जिसमें चाह कर भी वो अपने दर्द का चीत्कार नही कर सकती थी......
बहुत सारी चीज़ें देखी हैं....अनकही बातों के पीछे......कभी नही बताए गए दर्द का सच और....और भी बहुत कुछ.......जिसे लिखने से कहीं मेरा गुस्सा नफरत में ना बदल जाए.....इसलिए वो सारी बातें कही दफन कर रही हूं......
तुम क्या जानो इन सब बातों के साथ बदल गया हमारे आसपास का मौसम भी......जाने पहचाने चेहरों से दूरियां और फिर बिन मांगी बेचारगी का टैग....
इन सबके ज़िम्मेदार सिर्फ तुम हो....ये मैं और मेरा गुस्सा दोनो कहता था.......
कंटीले तारो की बाड़ो से घिरा जीवन.....सिर्फ एक तुम्हारे ना होने से.......
सिर्फ मां ही नही बदली...हमारी जिंदगी में भी एक अनकहा बदलाव आ गया था....
बचपन आने से पहले.....ज़िम्मेदारी की समझ आ गयी ........
खेलने....खिलखिलाने से पहले संजीदा होना आ गया......
जिद्द करने से पहले.....उसका मोल समझ आ गया....
भूख से पहले मेहनत समझ आयी....
और ज़िंदगी जीने से पहले उससे लड़ने की शक्ति ....
ये सारी चीजें....मेरी सोच....मेरी सांस लेने से पहले मेरे सामने एक कदम आगे खड़े होते थे.......
बचपन से अब तक मैं तुम्हें नहीं याद करती थी पर अपने आप से एक सवाल ज़रुर करती थी....
मेरी क्या गलती थी मेरी जिंदगी बाकी लोगों की तरह क्यों नही.....
धीरे धीरे सवाल अंदर दफन होते जाते हैं....और उनकी आवाज़ें कहीं दूर गूंजती महसूस होती हैं......
कई बार कई सवालों के जवाब हम खुद ही भूल जाना चाहते हैं.....
मेरे कई सवाल इसी के चलते गुम होते चले गए.......
अर्सा....हां एक लंबा अर्सा हो गया........
लगभग तीस साल हो जाएँगे.....
इन तमाम सवालों के जवाब तलाशते तलाशते......
किसी से कहा कभी नहीं पर.....तुम्हारे अक्स को तो इन निगाहों ने बहुत सारे चेहरों में खोजा.....
पर शायद तुम तुम ही होते.....इसलिए कोई और तुम नही हो पाया.....
धीरे धीरे ही सही पर मेरी समझ में भी आ ही गया......
ये सब मैं आज क्यों लिख रही हूं....और इससे पहले क्यों नही लिख पायी.....खुद के पास भी कोई जवाब नही है......पर जिंदगी में वो लम्हें बर्दाश्त नही हो पाते जब मां के जीवन में तुम्हारी कमी के बारे में सोचती हूं......तुम्हें क्या मालूम होगा कि वो उम्र से पहले उम्रदराज़ होना ....कैसा लगता होगा......कैसे बताऊं.....और किसे बताऊं.....कि खूबसूरती की जगह झुर्रियों ने ले ली...और तुम्हारे गम में रोयी थकी आंखो में अब तुम्हारी जगह कैटारैक्ट है......
तुम्हारे जाने की सबसे ज्यादा शिकायत मुझे....उनके रुके जीवन को देखते होती थी और होती है.....कभी कुछ नया करते नहीं देखा...कभी जिंदगी जीते नहीं देखा.....सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभाते देखा .......बहुत गुस्सा है मेरे अंदर तुम्हे लेकर......गलती से तुम गर कभी मिल जाते तो शायद....
पर फिर भी मैं ये भी जानती हूं कि मेरी कई इच्छाएं अधूरी रह गयीं.....
तुम्हारी ऊंगली पकड़ के घूमने की.....
किसी दूर पगडंडी पर तुम्हारे साथ सैर पर जाने की....
तुम्हारे कांधे पर बैठने की....
तुम्हारा प्यार....तुम्हारी डांट....तुमसे मनुहार की....
तुम्हें और मां को एक साथ खुश देखने की....
एक घर.......अपना परिवार.....
और तुम्हें आए लव यू डैडी कहने की.......!!
15 comments:
फादर्स डे की शुभकामनाये...
आपकी लेखन शैली बहुत गहराई तक उतरती है
बहुत सुन्दर
सोचता हूँ के सुना था बेटी मां की परछाई होती है .....पर पिता के लिए उसके दिल के चार कोनो में से एक में ...... कितनी तेजी से ...लहू फासले तय करता है......सिर्फ दिल से दिल तक..... पहुंची पोस्ट ....!!
रुला दिया आपने .. पर शायद ज़िन्दगी यही है ..
हमे यहाँ सब नही मिलता .. जो नही है, वो तो कम है , कम रहेगा .. पर अब हमें वो देखना है जो हमारे पास है .. हम उसे कैसे समेट कर रख सकते हैं ..कैसे खुश रख सकते हैं .. कैसे खुश रह सकते हैं ..
मैं आपके समझाने कि कोशिश नही कर रहा हूँ .. वो तो आप ज्यादा जानती होंगी ..
बस जो महसूस किया लिख दिया ..
बहुत संवेदनशील व भावुक रचना है...एक पिता को सच्चे ह्रदय से याद करती हुई बेटी की...
पिता को याद करने का इससे मार्मिक वर्णन नहीं हो सकता।
मार्मिक प्रस्तुति!
yad ker liya yahi mukhy hai.
इसीलिए तो ये ज़िंदगी बहुत डराती है..पर तुम्हारे डैडी होते तो तुम पर फख्र जरूर करते।
Dil se likhe hue in shabdon ne dil mein bhavnaon ka tufan la diya...
ek behtreen post
bahut sundar!
http://anaugustborn.blogspot.com/2010/06/happy-fathers-day.html
ise bhi padiye.
aapne rula diya... dil kholkar..
Bahut sundar aur marmik rachna
zindagi mey jab bhi kabhi bohat akelapan khaley toh mujhe zarur yaad karna..mera ghar mey tumhara swagat hai..khushi milegi ,mujhe bhi..Ratna rajshri
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