कभी पलट कर नहीं देखती....
उमस भरी बेचेनी है..
जिंदगी बेखटक सरपट दौड़ी चली जा रही है..
मेरी सांसें कभी कभी थमती हैं..
इन्हें चैन नहीं...
मेरे सपनो की तरह पल पल बढती नहीं
इन आँखों में कई ख्वाब जाग रहे हैं
जाने कबसे
अब तो होश भी नहीं...
सपने...सपने.....और बस सपने...
पर समझ नहीं पा रही....
क्या ये सपने......मेरे सपने....
मेरे अपने...??
अकुलाहट ने भरम में डाल दिया
अब कुछ मालुम भी तो नहीं....
उस से वाकिफ भी नहीं
अरसा हुआ...
एक अक्स को सरमाया करते-करते
अब.....
अपना आईना ही झुठलाने लगी
गोया खुद को ही भुलाने लगी....
एक सोच हावी होती है
कभी कभी.....
गर पूरा न हो...
कोई सपना.....
फिर...
पर नहीं ...मन मानता नहीं....
अड़ता है उसी जिद पर....
बचपन में पढ़ी लाइन की तरह....
या तो सब कुछ ही चाहिए या फिर कुछ भी नहीं.........!!
11 comments:
पर नहीं ...मन मानता नहीं....
अड़ता है उसी जिद पर....
बचपन में पढ़ी लाइन की तरह....
या तो सब कुछ ही चाहिए या फिर कुछ भी नहीं.........!!
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
जानती हो आज सुबह सबसे पहले कौन सा गाना सुना मैंने
".एक सुबह एक मोड़ पर....... मैंने कहा उसे रोक कर ........हाथ बढ़ा ए जिंदगी....आँख मिलाके बात कर .........
कभी कभी सपनो से रूबरू होना भी ....मंजिल को...... आसां कर देता है
पर नहीं ...मन मानता नहीं....
अड़ता है उसी जिद पर....
बचपन में पढ़ी लाइन की तरह....
या तो सब कुछ ही चाहिए या फिर कुछ भी नहीं.........!!
ACHI PANKTIYA HE YE
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
आच्छी कविता है शुक्रिया
ग़ज़ब की रचना,आभार. ...
सुन्दर रचना.........."
Kamal ki post hain, pahli bar main achhi lagi hain apki kavitayein.
bahut subder dil ko chuti hui rchna , shukriya share karne ke liye !!
मन मचल जाता है, या तो सबकुछ चाहिए या फिर कुछ भी नहीं.. क्या सपने सचमुट इतने ही हसीन होते हैं.. ?
bahut acha hai....
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