Wednesday, August 26, 2009

ये दुनिया.....

कोई रोक सका है क्या....किसी की ख्वाहिशों को.....किसी के सपनों में बसती......अंगड़ाई लेती....चमकीले सपनों की दुनिया को.....नहीं शायद कोई नहीं...तुम भी तो नहीं जानते......समंदर बसता है तुम्हारे अंदर किसी अदावत का,जहां मैं गहराना चाहती हूं.....कोई उमगती हसरत की चाह...दूर से हिलोरे मारती है....ज़ब्त करते अल्फ़ाज़ों को एक नयी आरजू से उफनता महसूस कराती है......उन्हीं उफनती लहरो के बीच की अदावत की दुनिया में तुम्हें और करीब करना चाहती हूं....तुम रोको मत मुझे....मत रोको....ये कोई भूल है तो, कर लेने दो मुझे....कोई गुनाह है गर ये,तो,वो भी कुबूल....कोई हद नहीं मेरी चाहत की....कोई गहराई नहीं....कोई माप नहीं.....कोई ऊंच-नीच नहीं ......तुम्हें कैसे समझाऊं......हार कर,मुनहार कर,सब तो कर लिया....पर अब तक.....इस उजड़े दयार में....एक लम्हा भी नहीं गुज़रा...जो मुझ पर ज़िंदगी बरसा जाता......क्यों नहीं उतरने देते....अपने वजूद में......क्यों नहीं महसूस करना चाहते इस नशे को........जो कमबख्त आँख ही नहीं खोलने देता.......गुलाल में देखा...सुना....किसी ने दुनिया के रंगो,उमंगो के बारे में लिखा है...हां वो ही सब.... मानों मेरे लिए ही लिख दिया...ये दुनिया......क्योंकि मैं भी तो यही कहती हूं कि ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है........यूं मालूम होता है जैसे किसी ने मेरे अशआर उड़ेल दिए....किसी शायर के फीके लफ्ज़ों की दुनिया..... उसी के सपनों की दुनिया.....सतरंगी रंगो......गुलालों की दुनिया..... अलसायी सेज़ो के फूलों की दुनिया....करवट ले सोई....हकीकत की दुनिया.......दीवानी होती तबीयत की दुनिया......ख्वाहिश में लिपटी ज़रुरत की दुनिया.....तो लगता है.....वाकई ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है......जहां तुम नहीं.......क्या करुं जो किसी के इंकलाब की दुनिया है,ये......क्या लेना मुझे फैज़...ज़ौक...मीर.....ग़ालिब...के मजाज़ों की दुनिया से......उस पलछिन में बसे सवेरे की दुनिया मेरे लिए तो नहीं......ये दुनिया अपनी सी नहीं लगती.......हर वक्त जलती....सुलगती......महकती......दमकती दुनिया.....पर,ये वो दुनिया तो नहीं......जिसकी शिद्दत के लिए हर इक सांस में तुम बसते हो.......एक ही फलसफे पर भागती....किसी और के इरादों पर बसती ये दुनिया........नहीं ....ये दुनिया मेरे लिए नहीं हैं......मेरी दुनिया..तो कुछ और ही है.....तुम्हारी छोटी-छोटी खुशियों में बसती.......तुम्हारी मुस्कुराहट में मेरी ज़िदगी को हरसूं ऊंचाई पर ले जाती......हर उस शै में बसती....जो तुम्हारे करीब लाती ......हर उस लम्हें की साक्षी बनती......जब सिर्फ खुशियां बरसती......मेरी दुनिया तो तुम्हारे रंगों-उल्लासों की दुनिया......कोई कालिख नहीं......इस दुनिया से कोई और ख्वाहिश नहीं.......कोई ज़रुरत नहीं......क्यों नहीं ले जाते मुझे इस दुनिया से दूर ......सिर्फ और सिर्फ मेरी दुनिया में.......तुम्हारी दुनिया में........मेरे अपने ...तुम्हारे सपनों की दुनिया में..........मैं अपनी दुनिया सिर्फ यादों में नहीं बसाना चाहती ........मेरी दुनिया सिर्फ तुम.......।।

4 comments:

प्रवीण पराशर said...

बहुत खूब लिखा है .....

ओम आर्य said...

आपकी भावनाओ मे गहराई बहुत ही है ...........बहुत ही खुब्सूरत हसरतो से सज्जी है ये दुनिया........बहुत ही खुब

गौतम राजऋषि said...

"ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...यूं मालूम होता है जैसे किसी ने मेरे अशआर उड़ेल दिए"

और इस "कोई रोक सका है क्या..." से लेकर "मेरी सुनिया सिर्फ तुम" तक, जैसे शब्द-सारे-शब्द मेरे ही हों। नहीं , इतने सुंदर से लिख पाने की हैसियत कहाँ अपनी!!

CHANDAN said...

शानदार, पढ़ते वक्त लगा कि अपनी यादों का भी एक झरोखा साथ-साथ खुल गया है ।