हर रोज़ की तरह ही वो घर आया...दरवाज़े से अंदर दाखिल हुआ....पांव से किसी चीज़ के टकराने जैसा एहसास होने पर...नीचे देखा तो एक खत पड़ा था....हैरानी के साथ ...उसने उठाते हुए सोचा कि कौन होगा,इस दुनिया में जो उसे खत लिखेगा...वो भी मोबाइल और इंटरनेट के इस ज़माने में...जब तक उसने खत खोला और पढ़ना शुरु किया....वो पसीने से तर ब तर हो चुका था....उस पत्र पर लिखी नफीस लिखावट... उसका रंग......और उससे आती वो चिरपरिचित खुशबू उसे अंदर तक भिगो चुकी थी......
वो पत्र था....उसी का....उसी की किसी खास का....जो अब उसे छोड़कर इस दुनिया से जा चुकी थी.....खत में लिखा था.....
जब तक मैं इस खत की शक्ल में तुम्हारे हाथों में होगीं....इस दुनिया के लिए मैं बहुत दूर जा चुकी होंगी....तुम अचरज मत करो....ये हकीकत है....सिर्फ तुम्हारे लिए.......तुम परेशान मत होना ....लेकिन ये हकीकत है......और ये मेरा पहला आखिरी खत है।
जितने साल हमने एक साथ गुज़ारे हैं....उनकी अच्छी यादें लेकर जा रही हूं.....और जितने दिन तुमसे दूर रहना पड़ा....चाहकर भी डिलीट नहीं कर पा रही थी....हमेशा सोचा करती थी कि ऐसा क्या करुं कि तुम्हें यकीं हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं.......तमाम कोशिशें की लेकिन हार गयी.....एक अच्छी ज़िंदगी का सपना लिए जा रही हूं....हार गयी थी क्योंकि मेरी ही जिंदगी तमाशा बन गयी थी.... आज इसे लिखते हुए बहुत सुकून महसूस कर रही हूं....आज कुछ भी नहीं बाकी दिमाग...हमेशा की तरह तुम्हारा ही ख्याल मगर आज जैसा सुकून कभी नही था....हर दम एक सुगबुगाहट रहती थी मेरे अंदर....हर पल बेचैनी.....आज गज़ब शान्ति है वो ही शान्ति जो मैं चाहती थी....तुम्हारे साथ....अफसोस की कुछ किरचें भी हैं मेरे दिल में....मैं तुम्हें चाहती हूं.....तुम्हारा साथ चाहती हूं....सिर्फ तुम्हें ही चाहती हूं....पर तुम नहीं चाहते मुझे......क्योंकि कभी तुम उस प्यार को महसूस नहीं कर पाए....ज़िंदगी उस तरह से नही चल पाती .....जैसा हम सोचते है....लेकिन हम भी वैसे नहीं जी पाते जैसा ज़िदगी चाहती है......शायद ये भी अपनी-अपनी जिद्द के जैसा ही है........
तुम्हे मालूम है ना कि मैं तुम्हे मैसेज भी कर सकती थी ....तुम्हें मेल भी कर सकती थी........जैसा कि हर रोज़ ही करती थी.......बिना नागा..लेकिन आज जैसा...पहले कभी महसूस नहीं हुआ.....आज वो सारे सपने....जो कभी मुझे लड़ने का और जीने का जुनून दिया करते थे......अपने हाथों से तिलांजलि देकर जा रही हूं.......ये खत तुम्हें शायद एक दिन बाद मिलेगा....लेकिन मेरे लिए यही काफी है।
लिखना तो बहुत कुछ चाहती थी....लेकिन अब कोई गिले-शिकवे करने का वक्त नहीं.......मैं सिर्फ सीधा सच्चा यही बताना चाहती थी कि तुम्हारे अलावा ज़िंदगी में कुछ औऱ नही था....और तुम....।
शायद पुलिस को भी ये खत मिले...तो सोचेंगे कि ये सुसाएड नोट है बट आए हेट दिस वर्ड....मैं सुसाएड नहीं कर रही......ये तो सिर्फ मेरी थकान है.......मैं थक गयी लड़ते-लड़ते.....अब बर्दाश्त नहीं हो रहा कुछ भी.....पता नही तुम्हें ज़िंदगी में बिताए पलों में से किसी भी पल ये लगा या नही कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं......लेकिन मेरे लिए हर पल तुम्हारे साथ ही बीतता था...एक लव डिप्राइव्ड लाइफ लेकर जा रही हूं....अगर भगवान होता होगा दुनिया में....तो शायद दोबारा जन्म भी लूं....तुम्हारे ही करीब...
मै बिल्कुल आम लड़कियों की ही तरह थी....वैसे ही सपने ...वैसी ही ज़िंदगी जीने की चाहत....कुछ भी नहीं मिला....जो मिला पता नहीं वो सब क्या था....तुम्हारे अलावा अब इस ज़िदगी में अन्तहीन सन्नाटा....इफरात में फैला नज़र आता है....जहां भी नज़र उठा कर देखती हूं.....काला रंग दिखता है.....और तुम तो जानते ही हो कि मुझे सिर्फ लाल रंग चाहिए....तुम्हारा वाला....
और पत्र में बाकी शब्द धुंधले पड़ते जा रहे थे...
खाली कमरे में उसकी सांसो की आवाज़......शोर मचा रही थी......
उसकी धड़कनें शायद मर्सिया पढ़ रही थीं.....
और उसके हाथों का वो खत.....किसी के कफन में तब्दील हो चुका था......
पूरे पैंतीस साल गुज़र चुके हैं....इस घटना को.....तब से अब तक......हर रोज़ ताला खोलते वक्त...आज भी एक अजीब निगाह पांव के पास कुछ ढूंढते हुए नीचे तक चली जाती है.....उसी जगह यंत्रवत.....जहां वो सफेद लिफाफा पड़ा था....एक अजीब ज़र्द एहसास है .....जो हर रोज़ उसकी रीढ़ में से होकर गुज़रता है....आज भी हर रोज़ घर मे दाखिल होते वक्त वहीं ठहरता है.....हर रोज़ वोही सन्नाटा...शोर मचाता है....चारों तरफ निगाह दौड़ाने पर कोई तस्वीर नज़र नहीं आती,,,,पर कोई ऐसी जगह....ऐसा कोना नहीं जहां उसका चेहरा ना छपा दिखाई देता हो........
क्योंकि वो लम्हें उसने कभी कीमती समझे ही नहीं.....जिनकी कीमत वो आज चुका रहा है.....सबकुछ जड़वत....यंत्रवत चलता है.......
पैंतीस साल बाद भी उसका रुटीन नहीं बदला....रोज़ खाली हाथ आना.....लिफाफा खोलना..उसकी शक्ल को तलाशना.....उस खत को पढ़ना और तब तक पीना जब तक कि उसकी शक्ल दिखायी देना बंद ना हो जाए.......और सुबह के अलार्म के साथ उठकर एक फिर पैंतीस साल पुरानी यादों को ढोना.................।।।
7 comments:
..एक अच्छी ज़िंदगी का सपना लिए जा रही हूं....हार गयी थी क्योंकि मेरी ही जिंदगी तमाशा बन गयी थी.... आज इसे लिखते हुए बहुत सुकून महसूस कर रही हूं....आज कुछ भी नहीं बाकी दिमाग...हमेशा की तरह तुम्हारा ही ख्याल मगर आज जैसा सुकून कभी नही था..........
खुबसुरत जिन्दगी की तलाश ही जिन्दगी है पर क्या
करें जिन्दगी की तलाश नही है हम.
यही है जिन्दगी और इसमे सकुन क्या,प्यार क्या,और दर्द क्या.................
मोहब्बत अपने आप में एक सुकून होती है ...एक ऐसी चाहता जिसको पाने की चाहत एक नशा बन जाती है ...और हर रोज़ , हर पल हम उस नशे में रहते हैं ....मोहब्बत पा लेने भर का नाम नहीं ...मोहब्बत में जो हो उसे मोहब्बत लफ्ज़ से भी मोहब्बत होती है ....
इंसानी दुनिया शायद समझती भी है और नहीं भी ....ये मिलावटें और नासमझी दो लोगों को जुदा कर देती है ...कभी कभी खुद इंसान अपनी गलती से मोहब्बत खो देता है ...फिर उसके पास कोई नहीं होता
marmik,ehsaason ka samandar,sunder likha hai.
सुसाइड की जगह ज़िंदगी की थकान वाली बात अच्छी लगी।
बहुत शानदार। यकीन मानिए मैं भी बिल्कुल जड़वत होकर पढ़ता चला गया। एक-एक शब्द भावना में डूबे हुए। काश वह वक्त रहते उसकी अहमियत समझ पाता। इस कहानी ने मुझे अपने एक अजीज की याद दिला दी। फर्क सिर्फ इतना है कि उसने वह कदम नहीं उठाया। वैसी चिट्ठी नहीं भेजी
मौत हमेशा सुसाइड ही नहीं होती, किसी की जिंदगी से हमेशा के लिए चले जाना भी मौत ही होता है. उसका होना इसी तरह जिंदगी भर सालता रहता है...उसका होना, क्योंकि प्यार बस कुछ लम्हों के होने भर से जिंदगी भर के लिए घर कर जाता है...खालीपन में, सन्नाटे में.
इस कहानी के दर्द ने तड़पा दिया...यूँ लिखा है की लगा कि अभी अभी ये हादसा मेरे साथ ही गुजरा है.
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