Friday, January 30, 2009

क्योंकि तुम....

हां......तुम और तुम्हारा साथ....
सिर्फ ये ही अच्छा लगता है....तुम्हें भी तो सब पता है....मुझे क्या-क्या अच्छा लगता है......मेरे अनगिनत सपने और उन्हें तुम्हारे साथ पूरा होते देखना......ये भी अच्छा लगता है....तुम...तुम्हारा साथ....तुम्हारी याद...सबकुछ......हां वो सबकुछ अच्छा लगता है....तुम्हारे साथ साए की तरह रहना.....तुम्हारे साथ सफर करना......तुम्हारे साथ-साथ चलते मंज़िलों को छूना......अपने यानि हमारे.....चाहें अलग ही सही....सपनों को पूरा होते देखना.....बहुत अच्छा लगता है....।

तुम्हारे पंखो का साथ.......तुम्हारे रंग.....तुम्हारी नर्मी......तुम्हारी गर्मी.......तुम्हारा साया.......तुम्हारी आवाज़.....तुम्हारी नमी देने वाली जड़ों के साथ खुद को खिलते हुए देखना....तुम्हें पता है तुम मुझे कितने और क्यो अच्छे लगते हो......शायद मुझे मेरे वजूद से ज्यादा पहचानते हो....मुझे मुझसे ज्यादा जानते हो.......फक्र होता है मुझे तुम पर.....अपने आप पर.......क्योंकि तुम मेरे हो

तुम्हें भी मुझमें कुछ तो अच्छा लगता है......लेकिन,मुझे तुम्हारे जीने का अंदाज़....तुम्हारा रंग....तुम्हारा ढंग.....वो सबकुछ जो तुमसे जुड़ा है....वो सब अच्छा लगता है....जो कुछ भी तुम्हारा है.....मुझे तुम पर आश्रित होना....तुम्हारे लिए जीना.....तुम्हारे लिए मरना.....और तुम्हारे लिए ही जीने का सुरूर पैदा करना अच्छा लगता है........तुमसे अलग और तुमसे अच्छा.... कुछ और लगने के लिए ज़िदगी में जगह ही नहीं नज़र आती.......

तुम उस अनंत आकाश की तरह.....जिसकी तरफ मैं फक्र से सर उठाकर देखती हूं.........तुम्हारे आगोश में आने के लिए बेकरार.......तुममें समाहित होने को बार-बार और हरबार कोशिश करती हूं ........ऐसा लगता है वो सारे तारे जो तुम्हारे आगोश में समाए नज़र आते हैं......शायद मेरे लिए ही सजाए गए है.....इसलिए भी तुम अच्छे लगते हो.........

तुम समंदर में गहरे बैठे उस सीप की तरह..जिसके भीतर का मोती मैं पाना चाहती हूं और तुम्हें पाने को गहरे उतरती हूं......तुम्हारी सहजता और तुम्हारी उन्मुक्तता मुझे पागल बनाती है.....शायद इसलिए भी.......मेरे हर अरमान को तुम समझते हो........तुम्हारी एक सोच भी मुझे दमका जाती है........क्या तुम्हें नहीं मालूम तुम्हारे अंदर की रौशनी में मैं अपने आपको सबसे सहज तरीके से खोज पाती हूं....

तुम और तुमसे अलग कुछ भी नहीं.......तुम्हारी हर वो बात जो तुम मुझे अक्सर बताते हो....कभी मुझे बताने को कभी समझाने को ........एक-एक हर्फ मेरे ज़हन में छपता है........लेकिन तुम्हें कभी नहीं बताती......क्योंकि अक्सर कही हुई बातें समझ नहीं आती........औऱ बिन कहे सबकुछ समझते चले जाते हो............

तुम नहीं बताते अपने बारे में.........ना अपनी अभिव्यक्ति और ना अनुरक्ति........तुम बहुत गहरे उतरते हो.....जब उतरते हो अपने समंदर में......लेकिन अकेले.....बिना मुझे अपने साथ लिए.....लेकिन तुम कहीं भी हो........मुझे समझ में आते हो.......पर्त दर पर्त बिना खोले भी मेरे साथ बिताए एक एक सहज़ लम्हें मैं तुमको समझ पाती हूं.....मुझे तुम अच्छे लगते हो क्योंकि... मेरी गहराइयों को तुम समझ पाते हो.......मैं सिर्फ तुम औऱ तुममें समाना चाहती हूं........तुमसे अलग नहीं.....तुमसे दूर नहीं......तुम्हारे बिना नहीं......सिर्फ तुम्हारे साथ और तुम्हारे संग.........तुम....तुम औऱ सिर्फ तुम शायद शब्द कम पड़ते जा रहें हैं.......लेकिन तुम्हारे लिए मेरी कोशिशें नहीं.......

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत रेखा चित्र है......अद्भुत ..

अभिषेक मिश्र said...

क्योंकि अक्सर कही हुई बातें समझ नहीं आती........औऱ बिन कहे सबकुछ समझते चले जाते हो............
Bhavpurn panktiyan.

के सी said...

तुम्हारी नमी देने वाली जड़ों के साथ खुद को खिलते हुए देखना..