सपने
बहुत देखती हूं मैं
दिन-रात,सोते-जागते
उठते-बैठते
ऐसा लगता है,जैसे
शायद
कभी सोई ही नहीं
कोई रात ऐसी याद नहीं
जो बिना सपनों के
गुज़र गई हो
उसने कहा-
सपने देखो,
लेकिन
हक़ीकत में जियो
हक़ीकत में?
वो क्या होता है,
कैसे जीते हैं,
ये मैं पूछती हूं
उसने कहा,
आसपास देखो
और आंखे खुली रखो
कैसे समझाऊं उसे..........
कि खुली आंखो से भी सपने देखती हूं,मैं....।
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