इस बदले से सर्द मौसम में भी कोई सिरहन नहीं पैदा हो रही थी....वहां पहुंचकर उस ठंडे फर्श पर ...सिर्फ एक दरी पर बैठते ही कहीं कोई ठोस आधार सा मिलने जैसा महसूस हुआ.....हां आंखें बहुत कुछ समझना चाह रही थीं....उसकी बड़ी आंखों मे छुपी बातों को भी.....जिन्हें खामोशी की आदत पड़ गयी थी...पर उस रात वो भी बोल रही थीं...कि सब कैसे..... कितना.... कहां तक.... बदला है....... सब कुछ अजब सन्नाटों मे मुंदी बातों सा....वो आँखे....जो देखने के वक़्त हर दम....दम साधे देखतीं...थोड़ी थकी पर फिक्रमंद भी मालूम पड़ रही थीं....जो हर कदम किसी गिरते को देख उठाना तो चाहती हैं.....पर कहीं किसी अचकचाहट से थम जाती......वो कदमपोशी तो करना चाहती हैं पर....एक एक कदम साध कर रखना चाहती हैं....कितना कुछ बदल जाता हैं....हां इसका एहसास होता है कभी कभी.....जब मेरा पोर पोर कहता है....जब मेरी उंगलियां डोलती हैं.... बेहयायी में और शर्मिंदा होना चाहती हैं पर नहीं होती...... एक अज़ब जिद्द समा गयी है....अंदर...बड़ी बेशर्मी से...इस बेहयायी को मानते....जानते कुछ नहीं लगता.....अब बेमुरव्वत होने का अंदाज़ भी भला लगता है....कोई रोकता ही नहीं अब किसी भी....हरकत पर...सबकुछ बेज़ार सा है...सब एक बाज़ार सा है.....जो अपना विस्तार दिखाता....थोड़ा डराता है.....फैला है वो दूर-दूर.....अब मुझे मेरे जैसा कोई नहीं दिखता....मेरी नादानी अब मुझे हंसाती नहीं....मै संजीदा हो गयी हूं....अब धीमे-धीमे पसरता कल का धुआं....आंख मे चुभता नहीं....और कुछ छुपा भी नहीं पाता.... कभी कभी मैं चोरी छुपे अपनी ख्वाहिशों की ख्वाहिश करती रहती हूं....जब कभी किसी पीर का दर देखती हूं या फिर आसमान में कोई टूटता तारा....तारे को जिसने टूटते देखा है.....बस वो ही जानता है कितनी लंबी लकीर खींचता....चला जाता है...इस ज़हन पर... .पता नहीं किसी ने देखा या नहीं पर मैने देखा और हर बार कुछ मांगा.....कहते हैं पूरे दिन में एक ख्वाहिश ज़रुर पूरी हो जाती है.... इसलिए अब बहुत सोच के शब्द इस्तेमाल करती हूं,....
मैं कभी इस अन्जानी सी दुनिया में कुछ तलाशने की कोशिश करती हूं....पर हर बार कुछ भी नहीं पाती.....इसीलिए जो कुछ बचा है उसे खोना नहीं चाहती...क्योंकि ये दुनिया मेरी अपनी परिचित दुनिया नहीं है...मेरे आसपास अपरिचित अप्रिय आवाज़ें होती हैं....जो ज़िंदगी में शिद्दत को थामने की भरपूर कोशिश कर रही होती हैं....अपने थके पाँव को गुनगुने पानी से धो कर आराम देने जैसी कवायद का मन करता है....पर कुछ भी हो क्यों नहीं पाता..... कई बार अनगिनत.... बेसबब.... बेमज़ा.... हिसाब किताब करती हूं.....कुछ नफा नुक्सान जैसा हाथ नहीं आता....फिर से एक बाज़ार नज़र आ जाता है.... पर पता नहीं क्यों वहां मुझे मेरी ही ज़मीन नज़र आ जाती है....वोही खोयी ज़मीन जिसकी तलाश पता नही कब से थी....उस सड़क के किनारे की छांव....धूल और पेड़ और तेज़ रफ्तार भागती दौड़ती ज़िंदगियां.....मुझमें यकीनन एक रवानगी छा जाती है.....उस सड़क किनारे बसता सबकुछ एक सा फिर भी कितना अलग....मेरे बिना शायद अधूरा सा था....अब पूरा लगता है..... अब मुस्कुराहट भरने लगी है....मेरे रोम रोम में....एक पंजाबी फोक गूंजता रहता है मेरे कानों में....अंखियां विच तू वसदा.....पर किसी को भी अब मेरे अचानक मुस्कुराने की वजह नहीं मालूम....पर मैं बांटना चाहती हूं ...सबके साथ... कि मुझे मेरी ज़मीं मिल गयी है....। .
14 comments:
nice story
nice story
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जाने क्या गुजरा इसे पढके .कई गलियों में घूम आया ...कुछ जानी पहचानी थी .कुछ अनजानी सी...बरस भर पहले एक नज़्म लिखी थी सो याद आयी....
खींच देता है दलीलो की लकीर
हम दोनो के दरमियां
उलझता है मेरी ख्वाहिशो से,
टोकता है मेरी जुस्तजुओ को.........
जुदा है मेरे रास्तो से
जिद्दी भी है ......मगरूर भी है थोडा
यादो के टीले पर अक्सर तन्हा खड़ा मिलता है
मुझसे मुख्तलिख एक शख्स........
मेरे ज़ेहन मे आवारा सा फिरता है
बहुत उम्दा!!
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत -बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
बेहतरीन... लाजवाब.. लफ्ज़ों की खूबसूरत बाज़ीगरी..
आमीन!
खुशियों की ये जमीन सलामत रहे, खुशबूदार फूलों से गमके, लहलहाते खेतों में सोना बिखरे, घने बगीचों में कोयल बोले...आबाद रहे ये मंजिल, ये सरजमीं.
Nice writing... nice blog
Hi तनु, बहुत ख़ूबसूरत लिखा है। चलो मुस्कुराने की वजह भले न बताओ, मुस्कुराओ यही बहुत है।
@pooja n varsh...
thnx a ton swthrts...i really need it.
Tara tootne ka prateek Shailendra khoob istemaal karte rahe apne geeton men. vahan aksar dil tootne kesandarbh men
बहुत ख़ूबसूरत लिखा है।
Post a Comment